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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 हानि-वृद्धि को न जानता हो वह काला-लोहित रंग वाला कापोत लेश्या वाला कहा जाता है। ४. पीत लेश्या (शभ मनोवृत्ति) -जो अपने कर्तव्याकर्तव्य को जानता हो, समदर्शी हो विनीत, संयमी, दया और दान में रत हो, मृदु स्वभावी और ज्ञानी हो- ये सब तेजोलेश्या वाले के लक्षण हैं।22 ५. पदम लेश्या (शभतर मनोवृत्ति)- जो त्याग, भद्र, सत्यभाषी, क्षमाशील गुरु देवता पूजन में रुचि रखने वाला हो, वह पद्म लेश्या वाला होता है। ६. शुक्ललेश्या (परम शुभ मनोवृत्ति) - यह मनोभूमि शुभ मनोभाव की सर्वोच्च भूमिका है। निर्वर, वीतरागता, पाप कार्यों से उदासीनता, सब में समान व्यवहार करना शुक्ल लेश्या के लक्षण हैं। सदैव स्वधर्म एवं स्व स्वरूप में निमग्न रहता है।4 अलेश्या का लक्षण जो कृष्णादि छः लेश्याओं से रहित है, पंच परिवर्तनरूप संसार से विनिर्गत है, अनन्त सुखी है आत्मोपलब्धिरूप सिद्धिपुरी को सम्प्राप्त है ऐसे अयोगकेवली और सिद्ध जीवों को अलेश्य जानना चाहिए।25 लेश्या परिणामों को समझाने के लिए दृष्टान्त लेश्याकोश में जम्बूखादक दृष्टान्त और ग्रामघातक दृष्टान्त सर्वविदित है(क) जह जंबुरुवरेगो, सुपक्कफलभरियनमियसालग्गो। दिट्ठो छहिं पुरिसेहिं, ते बिंती जंबु भक्खेमो। किह पुण? ते बेंतेक्को, आरुहमाणाण जीव संदेही। तो छिंदिऊण मूले, पाडेमुं ताहे भक्खेमो॥ बिति आह एदहेणं, किं छिणेणं तरुण अहं ति? साहामहल्लछिंदह, तइओ बेंती पसाहाओ॥ गोच्छे चउत्थओ उण, पंचमओ बेति गेण्हह फलाई? छट्ठीं तस्सोवणओ, जो बेंति तरू विछिन्नमूलओ। सो वट्टइ किण्हाए, साहमहल्ला उ नीलाए॥ हवइ पसाहा काऊ, गोच्छा तेऊ फला य पम्हाए। पडियाए सुक्कलेसा, अहवा अणं उदाहरणं॥२६ (ख) पहिया जे छप्पुरिसा परिभट्टारणमज्झ देसम्हि। फलभरियरुक्खमेगं पेक्खित्ता ते विचिंतं ति॥ णिम्मूल खंध साहुवसाहुं छित्तुं चिणित्तु पडिदाई। खाउं फलाइं इदि जं मणेण वयणं हवे कम्म।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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