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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 6. शुक्ललेश्या- तीव्रतम प्रशस्त मनोभाव लेश्याएं मनोभाव मात्र नहीं चरित्र के आधार पर व्यक्तित्त्व के प्रकार भी है। सर्वार्थसिद्धि और धवलादि में कषाय से अनुरंजित मन-वचन-काय योग की प्रवृत्ति को लेश्या कहते इसीलिए यह औदायिक कही जाती है। प्रवृत्ति से तात्पर्य कर्म से है। ____ गोम्मट्टसार के अनुसार मोहनीय कर्म के उदय, क्षयोपशम, उपशम अथवा क्षय से उत्पन्न हुआ जो जीव का स्पन्द है वह भावलेश्या है "मोहोदयखओवसमोवसमखयजजीफंदणं भावो लेस्सा।''17_ ___ भावलेश्या जीव परिणामों के दस भेदों में से एक भेद है। लेश्या को उदयनिष्पन्न भाव कहा है। नियुक्तिकार कहते हैं कि जीवों में उदयभाव से छः लेश्याएं होती हैं। 'भावे उदयो भणिओ, छण्हं लेसाण जीवेसु'।।8 भावलेश्या जीव परिणाम है। भावलेश्या अवर्णी, अगंणी, अरसी, अस्पर्शी है। भावलेश्या अगुरुलघु है। भावलेश्या उदयनिष्पन्न भाव है। भावलेश्या परस्पर में परिणमन करती है। भावलेश्या सुगति-दुर्गति की हेतु है अतः कर्म बन्धन में भी किसी प्रकार हेतु है। कृष्णभावलेश्याओं के लक्षण लेश्यामार्गणा में जीवों के भाव का अधिाकार होने से द्रव्यलेश्या नहीं गिनी गई भावलेश्या ही यहाँ अभिप्रेत है। १. कृष्णलेश्या- (अशुभतम मनोवृत्ति) उत्तराध्ययन, तिलोयपण्णत्ति के अनुसार कृष्ण लेश्या से युक्त दुष्ट पुरुष अपने ही गोत्रीय तथा एकमात्र स्व कलत्र को भी मारने की इच्छा करता है। दयाधर्म से रहित, वैर को न छोड़ने वाला, असंतोषी, क्लेशी, तामसभाव वाला होता है।'' २. नीललेश्या (अशुभतर मनोवृत्ति) - विषय लोलुपी, मानी, आलसी, कायर, दूसरों को ठगने में तत्पर, माया-प्रपंच में संलग्न, लोभी, अनृतभाषी नील लेश्या के लक्षण हैं। ३. कापोतलेश्या (अशुभ मनोवृत्ति) - जो कर्तव्याकर्तव्य को न गिनता हो, दूषण- बहुल हो, भय बहुल हो, दूसरों से ईर्ष्या करता हो, अपनी
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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