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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 यद्यपि जैन विचारकों ने मात्रात्मक अन्तरों के आधार पर तीन, नौ, इक्यासी और दो सौ तैतालिस उपभेद भी गिनाए हैं किन्तु मुख्य रूप से छः का ही विस्तार मिलता है।
पं. सुखलाल जी के अनुसार कृष्ण और शुक्ल के बीच की लेश्याएं विचारगत अशुभता और शुभता का विविध मिश्रण मात्र है।'
सर्वार्थसिद्धि, गोम्मटसार, उत्तराध्ययनादि सिद्धान्तग्रन्थों के अनुसार लेश्या के दो भेद हैं- 'लेश्या द्विविधा-द्रव्यलेश्या भावलेश्या चेति'110 द्रव्य-भावरूप लेश्या के उत्तरभेद -
षट्खण्डागम उत्तराध्ययन आदि में लेश्या मार्गणा के अनुवाद से कृष्णलेश्या, नील लेश्या, कापोतलेश्या, तेजो लेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ल लेश्या और अलेश्या वाले जीवों का वर्णन है।"
द्रव्यलेश्या, कृष्णादिक छह प्रकार की हैं, उनमें एक-एक भेद अपने-अपने उत्तरभेदों के द्वारा अनेक रूप हैं। जिस प्रकार कृष्णवर्ण हीन-उत्कृष्ट पर्यन्त अनन्त भेदों को लिए हुए है। उसी प्रकार छहों द्रव्य लेश्या के जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त शरीर के वर्ण की अपेक्षा संख्यात, असंख्यात व अनन्त तक भेद हो जाते हैं।12। लेष्ठया को ष्टुभ और अष्ठाभ भेद से 2 प्रकार की कही गई है। अशुभ लेश्या कृष्ण, नील, कपोत के भेद से तीन प्रकार की है और पीत, पद्म, लेश्या भेद से शुभ लेश्या तीन प्रकार की है। लेश्या के सामान्यतः भेद1. दो भेद - द्रव्य तथा भाव 2. छः भेद - कष्टक्षण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल दलगत द्रव्य लेश्या के भेद1. दुर्गन्धावाली- (कृष्ण-नील-कपोत) सुगन्धावली - (पीत-पद्म-शुक्ल) 2. रस की अपेक्षा-अमनोज्ञ- (कृष्ण-नील-कपोत) अमनोज्ञ(पीत-पद्म-शुक्ल) 3. स्पर्श की अपेक्षा-शीतरूक्ष-(कृष्ण-नील-कपोत) उष्णस्निग्ध(पीत-पद्म-शुक्ल) 4. वर्ण की अपेक्षा- अविशुद्ध (कृष्ण-नील-कपोत) विशुद्ध - (पीत-पद्म-शुक्ल) द्रव्य लेश्या :