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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 इसिभासियाई' का दार्शनिक विवेचन - डॉ. धर्मचन्द जैन 'इसिभासियाई' (ऋषिभाषितानि) भारतीय आध्यात्मिक एवं दार्शनिक परम्परा का एक अद्भुत महनीय ग्रन्थ है, जिसमें जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों परम्पराओं के अर्हत् ऋषियों के मूल्यवान् विचार संगृहीत हैं। विशेषता यह है कि इसे श्वेताम्बर परम्परा के अंग बाह्य आगमों में स्थान प्राप्त है। अर्द्धमागधी प्राकृत भाषा में रचित यह आगम भाषा एवं विषय वस्तु की प्रस्तुति की दृष्टि से अत्यन्त प्राचीन है। डॉ. सागरमल जैन इसे आचारांग सूत्र के पश्चात् तृतीय-चतुर्थ शती ईसवीय पूर्व की रचना मानते हैं। डॉ. वाल्थर शूबिंग इसे तीर्थकर पार्श्व की परम्परा से निर्मित ग्रन्थ स्वीकार करते हैं। डॉ. समणी कुसुमप्रज्ञा लिखती हैं कि पुष्ट प्रमाणों के अभाव में इस ग्रंथ-रचना का सही समय निर्धारित करना सम्भव नहीं है, लेकिन भाषा शैली, रचना तथा अन्य आगम एवं व्याख्या-साहित्य में इसके उल्लेख से यह कहा जा सकता है कि यह ग्रंथ काफी प्राचीन है। 'इसिभासियाई' का उल्लेख तत्त्वार्थभाष्य में प्रदत्त अंग बाह्य आगमों की सूची में हुआ है। नन्दीसूत्र में इसे कालिकसूत्रों की सूची में रखा गया है तथा स्थानांगसूत्र में उल्लिखित प्रश्नव्याकरणदशा नामक आगम के दश अध्ययनों में इसे स्थान दिया गया है। समवायांग सूत्र में इसके 45 में से 44 अध्ययनों का नामोल्लेख है। इस प्रकार आगम-साहित्य में उल्लिखित 'इसिभासियाइं' की सम्प्रति प्रकीर्णक आगमों में गणना की जाती है। आचार्य भद्रबाहु ने जिन दस आगमों पर नियुक्ति लिखने का संकल्प किया है, उनमें इसिभासियाई भी एक है, किन्तु इस पर एवं सूर्यप्रज्ञप्ति पर सम्प्रति उनकी कोई नियुक्ति प्राप्त नहीं होती। वस्ततः 'इसिभासियाई' सम्पूर्ण भारतीय वाड्.मय की एक अमूल्य निधि है, जो जैनाचार्यों की वैचारिक उदारता एवं धार्मिक सहिष्णुता को प्रतिबिम्बित करती है। इसमें नारद, असितदेवल, अंबड, तारायण, याज्ञवल्क्य, मंखलि गोशालक आदि विषयों के वचन संगृहीत हैं, किन्तु उनका खण्डन
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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