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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 आध्यात्मिक भजन क्यों ना ध्यान लगाये वीर से बावरिया। जाना देश पराये झमेला दो दिन का।। टेक जीवन तेरा है इक सपना, इस दुनिया में कोई न अपना हंस अकेला जाए।। क्यों ना ..... माता पिता चाची व ताई, पिता पुत्र और भाई जंवाई मतलब से प्रीति लगाए।। क्यों ना....... जो हैं तुझ को सबसे प्यारे, मृतक देख वे होंगे न्यारे कोई संग न जाए।। क्यों ना......... जिस तन को तू रोज सजावे, आखिर मिट्टी में मिल जाए फिर पीछे पछताए।। क्यों ना............ जिस माया पर तू इतराये, आखिर में कछु काम न आये। यहीं पड़ा रह जाए।। क्यों ना.......... धर्म ही आखिर काम में आए, हर दम तेरा साथ निभाए। "त्रिलोकी" यही समझाए।। क्यों न..... - कविवर त्रिलोकी
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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