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________________ अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 की भाषा में निबद्ध होने के कारण प्राचीन सूत्र ‘अर्ध-मागध' कहा जाता है। अर्धमागधी का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत प्रतीत होता है, तभी तो उसके सम्बन्ध में कहा गया है- “आरसदेसी भासानिययं वा अद्धमागहं"१८ आगमों के परिशीलन से पता चलता है कि देशी भाषाएँ कौन-कौन सी हैं, इसका उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु आगमों के कतिपय पात्रों की विशेषताओं के वर्णन में आरह देशी भाषा विषारद्' का प्रयोग अनेक स्थलों पर हुआ है, जैसे- ज्ञाताधर्मकथाड्.ग सूत्र में मेघ कुमार के संबन्ध में बताते हुए लिखा गया है - तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कला-पंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए आरसविहिप्पगार देसीभासा विसार........ वियालचारी जाए यावि होत्था। इसी प्रकार विपाक सूत्र के द्वितीय अध्याय में भी कहा गया है"तत्थ णं वाणियग्गामे कामज्झया नामं गणिया होत्था-अहीण.. नवंगसुत्तपडिबोहिया 'आरसदेसी भासा विसारया' सिंगारागारचारूवेसा.... पालेमाणी विहरइ। इसी प्रकार का वर्णन राजप्रश्नीय तथा औपपातिक सूत्र में भी मिलता है, जैसे-तए णं से दढपइण्णे दारए.....आरसविहदेसिप्पगारभसा विसारए...वियालचारी यावि भविस्सा तए णं से दढपइण्णे दारए अट्ठारस देसी- भासा-विसारए गीयरई- यावि भाविस्सइ। तए णं से दढूपइण्णं दारगं अम्मापियरो. आरसदेसी-भासाविसारयं.....उवणिमंतेहिंति२२ इसी प्रकार अन्तकृद्दशांग में भी कहा गया है-तए णं से अणीयसे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए आरसविहिप्पगार-देसीभासाविसारइ गीइरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था।२३ अर्थात् तब अनीयस कुमार बहत्तर कलाओं में पंडित हो गया। उसके नौ अंग-दो कान, दो नेत्र, दो नासिकाद्वार, जिह्वा, त्वचा और मन बाल्यावस्था के कारण जो सुप्त-से थे वे जागृत हो गए। वह आरह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया ।वह रीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया। वह अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध और बाहुयुद्ध करने वाला बन गया। अपनी बाजुओं से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हो गया। भोग भोगने का
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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