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________________ अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 हैं। सूक्ष्म पर्याय अणु में ही होती है, स्कन्धों में तो सूक्ष्म पर्याय सापेक्ष है।३३ पुद्गल के कार्य या उपकार : आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में 'शरीरवाड्.मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् एवं ‘सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ३४ कहकर जीवों के उपयोग में आ रहे पाँचों के शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छ्वास को पुद्गल कार्य कहा है तथा सुख, दुख, जीवन एवं मरण को पुद्गल का कार्य कहा है।शरीर, वचन, मन एवं श्वासोच्छ्वास पुद्गल वर्गणाओं द्वारा निर्मित हैं ही, सुख-दुख एवं जीवन-मरण भी पुद्गलकृत कार्य हैं, क्योंकि पुद्गल-मूर्त कारणों के रहने पर ही इनकी उत्पत्ति होती है। आचार्य पूज्यपाद कहते है- ‘एतानि सुखादीनि जीवस्य पुद्गलकृत उपकारः, मूर्तिमद्हेतुसन्निधने सति तदुत्पत्तेः।'३५ आचार्य विद्यानन्दि स्वामी का कथन है कि जीव में विपाक को करने वाली सातावेदनीय, असाता वेदनीय आदि कर्म स्वरूप पुद्गलों का उपकार जीव के लिए सुख आदि अनुग्रह करना है। इन सुख आदि उपग्रहों से उनके कारणभूत अतीन्द्रिय पुद्गलों का अनुमान कर लिया जाता है - 'सुखाद्युपग्रहाश्चोपकारो जीवविपाकिनाम्। सातावेद्यादिकर्मात्मपुद्गलानामितोऽनुमा।।२६ पुद्गल के भेद : तत्त्वार्थसूत्र में पुद्गल के दो भेद किये गये हैं - अणु और स्कन्ध। अणुओं की उत्पत्ति भेद से होती है, जबकि स्कन्धों की उत्पत्ति भेद और संघात दोनों से होती है। एक ही समय में हुए भेद और संघात से स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय का विषय बन जाते हैं। स्कन्ध तीन प्रकार का होता है-स्कन्ध, स्कन्धदेश और स्कन्ध प्रदेश। अनन्तानन्त परमाणओं से निर्मित होने पर जो एक हो वह स्कन्ध है। एक स्कन्ध के आधे को स्कन्धदेश तथा उसके आधे को स्कन्ध प्रदेश कहा जाता है। परमाणु स्कन्ध का अविभागी पुद्गलांश है। यह एक प्रदेशी है, आदि - मध्य-अन्त से रहित है तथा विभाग विहीन होता है। परमाणु को इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता है। (२) धर्म द्रव्य और (३) अधर्म द्रव्य : जैन दर्शन में धर्म द्रव्य और अधर्म दव्य में धर्म और अधर्म शब्द
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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