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________________ अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 इच्छा।' जीव और पुद्गल के बीच का सम्बन्ध विषयी प्रमाता का विषय प्रमेय के साथ सम्बन्ध है। सिद्धात्मा सर्वज्ञ होते हैं क्योंकि उनकी चेतना में विश्व प्रतिबिम्बित रहता है। जीव की इच्छा से ही विषयी और विषय में क्रिया प्रतिक्रिया होती है इच्छा के कारण ही जीव बन्धन में पड़ता है पर उसका इच्छारहित होना भी सम्भव है। जैनियों के ये विचार श्रीमद्भागवद् गीता से साम्य रखते हैं काय आदि योगों के द्वारा जीव में उत्पन्न होने वाला परिस्पन्द दो प्रकार का होता है- १. क्रोध, मान आदि मानसिक विकार से रहित साधारण क्रियाओं के रूप में २. मान, क्रोध, माया और लोभ इन मनोविकार रूप कषायों के वेग से प्रेरित। प्रथम प्रकार के द्वारा आत्मा और कर्म प्रदेशों का कोई स्थिर बन्ध उत्पन्न नहीं होता है। इस प्रकार का कर्मास्रव समस्त संसारी जीवों में निरन्तर हुआ करता है क्योंकि किसी न किसी प्रकार की मानसिक शारीरिक या वाचिक क्रिया सदैव हुआ करती है किन्तु उसका कोई विशेष परिणाम आत्मा पर नहीं पड़ता है। जीव की मानसिक आदि क्रियाएं कषायों से युक्त होती हैं तब आत्मप्रदेशों में एक ऐसी पदार्थ-ग्राहिणी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण उसके सम्पर्क में आने वाले कर्म परमाणु उससे शीघ्र पृथक् नहीं होते हैं क्रोधादि विकारों की इसी शक्ति के कारण उन्हें कषाय कहते हैं। ये क्रोधादि मनोविकार जीव में कर्म परमाणुओं का आश्लेष कराने में कारणीभूत होने के कारण ही कषाय कहलाते हैं। इस सकषाय अवस्था में उत्पन्न हुआ कर्मास्रव साम्परायिक कहलाता है और यह अपना कुछ न कुछ प्रभाव दिखाये बिना आत्मा से पृथक् नहीं होता। जैन विचारकों ने आत्मा को क्रियाशील माना है और शरीर को निष्क्रिय। इस प्रकार उन्होंने विषयी विज्ञानवाद और भौतिकवाद दोनों के दोषों का निराकरण करके मन और प्रकृति के साहचर्य को स्वीकार किया है। किन्तु जैनमत इस विषय का विचार नहीं करता कि आत्म एवं अनात्म में भेद मन के अनिवार्य स्वभाव की ही उपज है। जैनमत विकास के ऐसे भी किसी विचार से अभिज्ञ नहीं है, जिसके अनुसार शरीर अपने विकास की उच्चतर अवस्थाओं में नये गुण धारण कर लेता है। जैनदर्शन में मन और शरीर के द्वैतभाव को माना गया है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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