SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 हरिषेण चक्री अपनी माता के अष्टाह्निन पर्व पर रथयात्रा निकाले के संकल्प को पूरा करता है। इससे यह प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में धर्म के पर्वो में भी उत्सव मनाया जाता था। राज्याभिषेकोत्सव - राजा राज्य सुख भोगने के पश्चात् तप और ध्यान के लिए दीक्षा ग्रहण करता था। उससे पूर्व वह राज्य का उत्तरदायित्व अपने सुयोग्य तथा समर्थ पुत्र को सौंपता था और इस हेतु पुत्र का राज्याभिषेक किया जाता था। कहकोसु में मुनि श्रीधर के पुनः राज्य स्वीकार करने पर मंत्रीवर्ग ने उनका राज्याभिषेक किया। इससे यह भी ध्वनित होता है कि पूर्व काल में मुनि भी अपने राज्य की रक्षा के लिए मुनि पद का त्याग पुनः अपना राज्य स्वीकार कर लेते थे परन्तु यह मार्ग अपवाद मार्ग है। विवाह संस्कार - शास्त्रकारों ने विवाह की परिभाषा बतलाते हुए लिखा है- सद्वेद्यस्य चारित्रमोहस्य चोदयात् विवहनं कन्यावरणं विवाह इत्याख्यायते अर्थात् सातावेदनीय और चारित्रमोहनीय के उदय से विवहन, कन्यावरण करना विवाह कहा जाता है। अग्नि, देव और द्विज की साक्षी पूर्वक पाणिग्रहण क्रिया का संपन्न होना विवाह है। सोमदत्त तथा यज्ञदत्ता के विवाह संबन्ध के उल्लेख से यह प्रतीत होता है कि बुआ तथा मामा के पुत्र व पुत्री का विवाह संबन्ध स्वीकार था। कहकोसु में बहुविवाह की प्रथा का समर्थन भी प्राप्त होता है यथा- हरिषेण ९६००० कन्याओं से विवाह कर उन्हें अपनी रानी बनाया। रानी चेलना के पुत्र वारिषेण का विवाह ३२ सुंदर कन्याओं के साथ हुआ। राजकुमार वज्रकुमार ने मदनवेगा राजकुमारी के साथ विवाह किया। कल्लासमित्र की कथा में मदिरा व्यापारी पूर्णचंद्र अपने पुत्री का विवाह बड़े उत्सव के रूप में करता है तथा उसने पुत्री का विवाह के उपलक्ष्य में पूरे नगर को भोजन दिया था। कहकोसु में विजातीय विवाह के संबंध में उल्लेख प्राप्त होता है। कहकोसु में बुद्धदासी के कथा में राजा जैनधर्म का अनुयायो और क्षत्रिय था तथा बुद्धदासी रानी वैश्य और बुद्धदासी को देखकर प्रेम हो जाने के कारण राजा ने धर्म परिवर्तन कर बुद्धदासी से विवाह कर लिया। इसे प्रेम विवाह भी कह सकते हैं। वहीं दूसरे कथानक में राजा विशाखादत्त ने अपने नगर में रहने
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy