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________________ 61 अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 से श्रान्त मानव क्रीडाविनोद द्वारा ही नई शक्ति तथा स्फूर्ति का संचय करता था तथा भावी जीवन में सफलता प्राप्त करता था। आदिपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि "उन्मार्ग कं न पीड्यते", "अत्यन्तरसि कानादौ पर्यन्ते प्राणहारिणः"१५ अर्थात् सर्वथा विनोद और क्रीडाओं का सेवन करने वाला व्यक्ति उन्मार्गगामी है। कहकोसु की दस संधियों में मनोरंजनार्थ नागक्रीड़ा, वनक्रीडा का उल्लेख प्राप्त होता है। वनक्रीड़ा - कहकोसु में कवि मुनि श्रीचंद ने वनक्रीड़ा का वर्णन प्रस्तुत किया है। वनक्रीड़ा के वर्णन में वज्रकुमार राजकुमार का कथानक आता है। जब वह ह्रीमंत पर्वत पर प्रकृति की शोभा देखने को गया। इसी प्रकार का कथानक वनमहोत्सव के रूप में मदिरा व्यवसायी पूर्णचन्द्र ने वन में घी, शर्करा के मिष्ठान्न का आयोजन किया। इस प्रकार वन में क्रीड़ा करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। नागक्रीड़ा कहकोसु में मुनि श्रीचंद ने वनक्रीड़ा के अतिरिक्त नागक्रीड़ा का वर्णन भी किया है। इसमें नागदत्त राजकुमार नागों से खेलने का शौकीन होता है जिसको वैराग्य दिलाने के लिए उसका पूर्व भव का मित्र देव आता है और दो भयंकर नागों से खेलने के लिए नागदत्त को प्रेरित करता है नागदत्त उसकी प्रेरणा को चुनौती समझकर नागों से खेलने लगता है। बातों बातों में नाग नागदत्त को डस लेता है और नागदत्त मूर्छित हो जाता है। नागदत्त को जीवित करने के लिए देव ने नागदत्त के पिता राजा से नागदत्त को मुनि की शर्त रखी। इस प्रकार नागक्रीड़ा का वर्णन प्राप्त होता है।१७ अष्टाह्निक महोत्सव - यह पर्व कार्तिक, फाल्गुन, आषाढ मास के अन्त के आठ दिनों में मनाया जाता है। जैन मान्यतानुसार इस पृथ्वी पर आठवाँ नन्दीश्वर द्वीप है। उस द्वीप में ५२ जिनालय बने हुए हैं। उनकी पूजा करने के लिए स्वर्ग से देवता उक्त दिनों में जाते हैं चूँकि मनुष्य वहाँ नहीं जा सकते, इसलिए वे उक्त दिनों में पर्व मनाकर यहीं पूजा कर लेते हैं जो व्यक्ति इसे भाव सहित तीन वर्षों तक करता है उसे स्वर्गसुख की प्राप्ति होती है। कहकोसु में दो स्थानों पर आष्टाह्निक पर्व का उल्लेख आता है राजा पृथ्वीमुख की रानी ओर्विला प्रतिवर्ष अपने नगर में जिनेन्द्र भगवान की रथयात्रा निकालती थी। द्वितीय उदाहरण में
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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