SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 कहकोसु में वर्णित सामाजिक चिंतन - डॉ० दर्शना जैन भूमिका: कहकोसु एक जैन कथाग्रंथ है तथा भगवती आराधना पर आधारित है, इसमें विभिन्न कथाओं का वर्णन किया गया है। ___ कहकोसु नामक ग्रंथ के रचयिता मुनि श्रीचन्द्र हैं। कवि श्रीचन्द्र ने अपना यह कथा ग्रंथ मूलराज नरेश के राज्यकाल में अणहिल्लपुर पाटन में समाप्त किया था। मूलराज सोलंकी ने सं० ९९८ में चावड़ा वंशीय अपने मामा सामन्तसिंह को मारकर राज्यछीन लिया था और स्वयं गुजरात पाटन अणहिलवाड़े की गद्दी पर बैठ गया। मुनि श्रीचन्द्र ने कहकोसु की रचना के पूर्व भगवती आराधना की दो गाथायें उद्धृत की हैं। कथाओं का प्रारंभिक परिचय एवं शीर्षक के बाद प्रायः भगवती आराधना की गाथाओं का भाग दिया है। डॉ. ए० एन० उपाध्ये ने कथाकोश अथवा कहकोसु की प्रस्तावना में एक तालिका दी है, जिसमें यह दृष्टव्य है कि किस प्रकार विभिन्न कथायें क्रमशः भगवती आराधना की गाथाओं से संबन्धित हैं। कई कथाओं में श्रीचन्द्र ने कहकोसु में भगवती आराधना का अनुशरण किया है। इस कहकोसु में ५३ संधियाँ हैं, जिनमें विविध व्रतों के अनुष्ठान द्वारा फल प्राप्त करने वालों की कथाओं का रोचक ढंग से संकलन किया गया है। कथाएँ सुन्दर और सुखद हैं। इस ग्रंथ की प्रत्येक सन्धि में कम से कम एक कथा अवश्य आई है। ये सभी कथाएं धार्मिक और उपदेशप्रद हैं। कथाओं का उद्देश्य मनुष्य के हृदय में निवेग भाव जागृत कर वैराग्य की ओर अग्रसर करना है। कथाकोश में आई हुई कथाएँ तीर्थकर महावीर के काल से गुरुपरम्परा द्वारा निरन्तर चलती आ रही हैं। अतः कहकोसु कथाग्रंथ में मुनि श्रीचंद्र ने भगवती आराधना तथा बृहत्कथा कोश से कथावस्तु ली है इसीलिए सामाजिक चित्रण में पौराणिक समाज का प्रभाव आंशिक रूप से प्रतिबिम्बित होता है। कवि ने अपने समय में प्रचलित सामाजिक मान्यताओं, प्रथाओं तथा संस्थाओं को अल्प ही चित्रित
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy