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________________ 55 अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 अनेको अनुत्तरित प्रश्न उत्पन्न हो जाते हैं। उनमें से कुछ प्रश्न निम्नलिखित हैं। १. कर्म तो हर समय उदय में आते रहते हैं पर भौतिक सामग्री और उच्च-नीच कुल तो बहुत समय तक विद्यमान रहते हैं। भौतिक सामग्री और उच्च-नीच कुल कौन से कर्म के उदय का कारण मानी जाए? २. यदि भौतिक सामग्री एक ही व्यक्ति को कभी अनुकूल और कभी प्रतिकूल प्रतीत होती है, तो वह भौतिक सामग्री किस कर्म के उदय का कारण मानी जाए? ३. यदि मनुष्य का अच्छा आचरण उसके अच्छे कर्मों का फल माना जाए, तो सब अच्छे आचरण वाले मनुष्य धन-दौलत से सम्पन्न होने चाहिए। परन्तु ऐसा नहीं है, क्यों? इस तरह के और अनेक प्रश्न हैं जिनका तर्क-संगत उत्तर केवल इस तथ्य के आधार पर दिया जा सकता है कि दृष्ट फल कर्म सिद्धांत द्वारा नियंत्रित कर्मों के फल नहीं है। निष्कर्ष - कर्म सिद्धान्त एक प्राकृतिक यूनिवर्सल सिद्धांत है जिसका कोई भी प्राणी उल्लंघन नहीं कर सकता। क्रिया के यूनिवर्सल अदृष्ट फल कर्म सिद्धांत द्वारा नियंत्रित होते हैं। क्रिया के दष्ट फल, जो यनिवर्सल नहीं है, कर्म सिद्धांत द्वारा नियंत्रित नहीं होते। कर्मफल केवल आत्मा और जीवित मैटर के गुणों की पर्याय में परिवर्तन करते हैं। कर्मफल न केवल कर्म पर निर्भर करता है, बल्कि कर्म के फलन के निमित्त कारण, यानी क्रिया पर भी। क्रिया की प्रकृति क्रिया के मूल और गौण साधन द्वारा निर्धारित होती है। मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा क्रिया के साधन चुनने में सक्षम हैं। संदर्भ : 8. Jain, Subhash C., Rebirth of the Karma Doctrin, Hindi Granth Karyalay, Mumbai, 2010. २. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) ३. जैन, ब्र. कल्पना, सागर, गोम्मटसार कर्मकाण्ड (प्रथम अध्याय विवेचिका), शांत्याशा प्रकाशन, जयपुर, २००४
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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