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________________ 48 अनेकान्त 67/4 अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 करता है, तब उसके योग की गति मंद हो जाती है और उसके साथ-साथ कोशिकाओं का स्पंदन भी मंद हो जाता है, जिसके कारण कार्मण स्कंध थोड़ी मात्रा में कोशिकाओं के संपर्क में और आत्मा के संयोग में आते हैं। कार्मण स्कंध आत्मा के संयोग में आने पर कर्म में परिवर्तित हो जाते हैं। योग की तीव्रता कार्मण स्कंधों की मात्रा और कर्म की प्रकृतियों को नियंत्रित करती है । कर्मों के फल देने का समय, यानी स्थिति और फलते समय की अभिव्यक्ति की प्रबलता, यानी अनुभाग, को क्रिया का दूसरा घटक मोह नियंत्रित करता है। कर्मों की स्थिति मोह की प्रबलता बढ़ने के साथ बढ़ती है। इसी प्रकार कर्मों का अनुभाग भी मोह की प्रबलता बढ़ने के साथ बढ़ता है। संक्षेप में योग से कार्मण स्कंध आत्मा के संयोग में आते हैं और कर्मों की विभिन्न प्रकृतियों में परिवर्तित हो जाते हैं। कर्म मोह द्वारा निर्धारित समय तक निष्क्रिय रहते हैं। उसके बाद कर्म सक्रिय होकर मोह द्वारा निर्धारित अनुभाग के अनुसार कर्मफल प्रदान करने के पश्चात आत्मा से पृथक हो जाते हैं। कर्मफल आत्मा और भौतिक शरीर के गुणों को प्रभावित करते हैं, जो बदले में प्राणी की नवीन क्रिया को प्रभावित करते हैं। नवीन क्रिया द्वारा नए कर्म आत्मा से बंध करते हैं और यह चक्र चलता रहता है। नए संलग्न कर्म पुरातन संलग्न कर्मों को संशोधित करते हैं। किस प्रकार के क्रियाफल और कर्मफल सिद्धांत द्वारा नियंत्रित होते हैं? कर्म सिद्धांत की उपर्युक्त संक्षेप जानकारी से इस प्रश्न का उत्तर पाना कठिन है। इस प्रश्न का सीधा और सरल उत्तर वर्तमान ग्रंथों में भी उपलब्ध नहीं है। साधारण मनुष्य को इस प्रश्न का या तो अधूरा, और या गलत उत्तर मालूम है। इस प्रश्न का सही उत्तर कर्म सिद्धांत का लक्षण समझने पर उपलब्ध किया जा सकता है। कर्म सिद्धान्त का लक्षण : कर्म सिद्धांत की सार्थकता के लिए यह आवश्यक है कि यह सिद्धांत सर्वत्र और सदैव वैध हो । कर्म सिद्धान्त अर्थहीन हो जाएगा यदि यह सिद्धांत कुछ ही स्थान पर लागू होता हो और शेष स्थान पर नहीं। मिसाल के तौर पर, यदि यह माना जाए कि कर्म सिद्धान्त केवल भारत देश में लागू होता है और शेष देशों में नहीं, तो मनुष्य भारत देश में अच्छी क्रिया करके और अन्य देशों में बुरी क्रिया करके कर्म सिद्धान्त को निरर्थक बना देगा। इसी प्रकार कर्म
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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