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________________ अनेकान्त 67/4 अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 श्रावकाचार एक वैज्ञानिक जाँच पड़ताल 33 • मनमोहन जैन - जैन परम्परा में गृहस्थ श्रावक (सागार) के लिए जिस आचारधर्म पालन किया जाता है, उसके प्ररूपक कई ग्रंथ श्रावकाचार नाम से प्रसिद्ध है, - यथा : १. आचार्य समंतभद्र (ई. दूसरी) कृत रत्नकरण्ड श्रावकाचार २. आचार्य योगेन्द्रदेव (ई. छठी) कृत नवकार श्रावकाचार ३. आचार्य अमितगति (ई. ९८३ - १०२३) - श्रावकाचार ४. आचार्य वसुनंदि ३ (ई. १०४३ - १०५३) - श्रावकाचार ५. पं. आशाधर (ई. ११७२-१२४३)- धर्मामृत-अनागार एवं सागार ६. आचार्यपद्यनंदि (ई. १३०५) श्रावकाचार ७. आचार्य सकलकीर्ति (ई. १४३३-१४४२) प्रश्नोत्तर श्रावकाचार ८. आचार्य तारण तरण (वि.सं. १५०५ - १५७२) - श्रावकाचार सामान्यतः श्रावक के आचार को लक्ष्य कर लिखे गए श्रावकाचार ग्रंथों में धर्म का स्वरूप, ज्ञान की आराधना, तप, षट् आवश्यक आदि विषयों सहित भोजन संबन्धी आचार एवं दोषों का विवरण मिलता है। यहाँ जैन धर्मभूषण धर्म दिवाकर ब्र. शीतलप्रसाद ने 'तारण तरण श्रावकाचार' ग्रंथ की टीका करते समय भूमिका में जो कथन किया है कि- "प्रायः जो श्रावकाचार प्रचलित है, उनमें व्यवहारनय का कथन अधिक है परन्तु इस ग्रंथ में निश्चयनय की प्रधानता से व्यवहार का कथन है।" सम्यग्दर्शनं न्यानं, चारित्रं सुध संयमं । जिनरूपं सुध दव्वार्थ साधओ साधु उच्यते ।।४४८ ।। अन्वयार्थ जो (सम्यग्दर्शनं न्यान चारित्रं) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र को (सुध संयमं ) शुद्ध संयम को, (जिनरूपं) जिनेन्द्र के स्वरूप को (सुध दव्वार्थ) शुद्ध आत्म द्रव्य के भाव को (साधओ) साधन करते हैं, वे (साधु उच्यते) साधु कहलाते हैं।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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