SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 31 आधुनिक बुनियादी शिक्षा (Basic Education) के मूल बीज का वपन आज से २५०० वर्ष पूर्व उन्होंने कर दिया था। वर्तमान में प्रासंगिकता - आज वर्तमान में हम यदि जैन शिक्षा के तत्त्वों को अपनी आधुनिक शिक्षा पद्धति में समावेश करें तो हम काफी हद तक शिक्षा में व्याप्त विसंगतियों से निजात पा सकते हैं जैसे-जैन शिक्षा में गुरु की महत्ता निस्प्रेय थी, आज वर्तमान में यही एक बहुत बड़ी महत्ता है। देश में हिंसा, झूठ, चोरी अपराध इतना भयंकर बढ़ा हुआ है, परन्तु दूसरी तरफ जैन नैतिक शिक्षा का प्रभाव जन-जीवन पर इतना अधिक हुआ कि सहस्रों वर्षों के बाद आज भी जैन धर्मावलम्बियों में अपराध वृत्ति नहीं के बराबर देखी है। यह तथ्य सर्वेक्षण द्वारा भी प्रमाणित हुई। यह नैतिक शिक्षा का ही प्रभाव है जैन परम्परा में शाकाहार को ही प्रतिष्ठा मिली तथा मादक द्रव्यों को कठोरतापूर्वक निषेध किया। संदर्भ: १. श्री आचारांगसूत्रम्, १/६/३, पृ.१०६: संपादक शोभाचन्द्र भारिल्ल श्री अमोल जैन ज्ञानालय, धुलिया, नवम्बर २९६० २. निसर्ग स्वभावः इत्यर्थः । यद्वाह्योपदेशादृते प्रादुर्भवति तन्नैसर्किकम्। (सर्वार्थासिद्धि, १/३/१२/३) 'निसृज्यत इति निसर्गः प्रवर्ततम्'। सर्वार्थसिद्धि १/९/३२६/६ राजवार्तिक १/३/२२/१६ तथा ६/९/२/५१६/२ ३. अधिगमोऽर्थावबोधः। यत्परोपदेशपूर्वकं जीवाद्यगमनिमित्तं तदुत्तरम्। सर्वार्थसिद्धि, १/३/१२ ४. धवला ४/३/,१/२/६, १/१,१,१/१०/४,१३/५/३, ५/३/११, १३/५? ५, ३/१९३/४ - कसायपाहुडं ५. नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्नयासः - तत्त्वार्थसूत्र, १/५, पृ. ११, विवेचनकर्ता पं. फूलचंद सिद्धान्तशास्त्री। षट्खण्डागम १३/५, ५ सूत्र ४/१९८, - धवला १/१, १, १/८३/१ ६. प्रकर्षेण मानं प्रमाणं, सकलादेशीत्यर्थः। धवला भाग ९, ४/१, ४५/१६६/१ ७. प्रमिणोति प्रमीयते अनेन प्रमितिमात्रं वा प्रमाणम्।१. सर्वार्थसिद्धि,१/१०,९८/२२. राजवार्तिक, १/१०/१/४९/१३ ८. प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणम्। कसायपाहुड १/१/१, २७/३७/६ । आप्तपरीक्षा ८१ स्याद्वादमंजरी, २०/३०७/१८। न्यायदीपिका १/१०/११ ९. धवला १/१, १/३, ४/१० १०. तत्त्वार्थसूत्र ९/२५, पृ. ४३४ : विवेचक पं. फूलचंद सिद्धान्तशास्त्री (पचविहे सज्झाये प्रण्णत्ते, तं जहा-वाचणा १, पुच्छण्धा २, ११. परियट्ठणा ३, अनुप्पेहा ४, धम्मकहा ५।। सूत्र २७।।)- स्थानांगसूत्रम् (चतुर्थोभाग) १२. 'शिष्याध्यापनं वाचना' - धवला ९/४/,१-५४,२५२/६
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy