SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 27 १. वाचना - भव्य जीवों के लिए शक्त्यनुसारा ग्रंथ की प्ररूपणा एवं शिष्यों को पढ़ाने का नाम वाचना है।१२ । २. पृच्छना - संशय का उच्छेद करने के लिए अथवा निश्चित विषय को पुष्ट करने के लिए प्रश्न करना पृच्छना है।३ ३. अनुप्रेक्षा- सुने हुए अर्थ का श्रुत के अनुसार चिंतन करने को भी अनुप्रेक्षा कहते हैं। ४. आम्नाय - उच्चारण की शुद्धिपूर्वक पाठ को पुनः पुनः दोहराना आम्नाय है।५ ५. धर्मोपदेश - इस विधि का उपयोग उसी समय किया जाता है, जब शिष्य प्रौढ़ हो जाता है और उसका मस्तिष्क विकसित हो प्रमुख विषयों को ग्रहण करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। आदिपुराण में आदि तीर्थकर इसी विधि के अंतर्गत लिया जा सकता है।१६ ६. (ख) प्रश्नोत्तर विधि- प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग जैन वाड्.मय में कई जगह आया है। अनेक प्रकार केप्रश्न उपस्थित कर उन प्रश्नों के उत्तर द्वारा विषयों का अध्ययन कराा तथा समस्या पूर्तियों या पहेलियों द्वारा बुद्धि को तीक्ष्ण करना इसका उद्देश्य है। यद्यपि इस विधि को पृच्छना के अंतर्गत भी रखा जा सकता है। यहाँ ज्ञानवर्द्धन हेतु कतिपय प्रश्नों और उत्तरों को प्रस्तुत किया जाता है वट वृक्षः पुरो यं ते धनच्छायः स्थितो महान्। इत्युक्तो पि न तं धर्मेश्रितः कोऽपिवदाद्रुतम्।। (स्पष्टान्धकम्) उपनिषदों की शिक्षा एवं समयसार की शिक्षा प्रश्नोत्तर विधि से ही संपन्न की जाती थी। ७. पाठ विधि - गुरु शिष्यों को पाठविधि द्वारा अंक और अक्षर-ज्ञान की शिक्षा देता है। वह किसी काष्ठ पट्टिका के ऊपर अंक या अक्षर लिख देता है। शिष्य उन अक्षरों या अंकों का अनुकरण करता है। बार-बार उन्हें लिखकर कण्ठस्थ करता है। आजकल भी यह शिक्षा प्राथमिक शालाओं (प्राइमरी स्कलों) में दी जाती है। ऋषभदेव ने अपनी कन्याओं को इसी विधि से शिक्षित किया था। यथा - इत्युक्त्वा मुहुराशास्य विस्तीर्णे हेमपट्ठके।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy