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________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 हो, उस निरञ्जन स्वरूप आत्मा का ध्यान रूपातीत कहलाता है। इस ध्यान में साधक चिदानन्दमय, शुद्ध, अमूर्त परमाक्षर आत्मा को आत्मा से ध्याता है। यह परमात्मा का शुद्ध रूप ध्यान है। इसमें साधक साधु अपनी आत्मा को परमात्मा समझकर स्मरण करता है। ध्यानी सिद्ध परमेष्ठी के ध्यान से शक्ति की अपेक्षा से अपने आपको उनके समान जानकर कर्मों का नाश करके व्यक्त रूप परमेष्ठी हो जाता है। इस ध्यान में ध्याता, ध्यान और ध्येय की एकता हो जाती है और इसी एकता को समरसी भाव कहते हैं।५२ यह ध्यान निरालम्ब ध्यान के अंतर्गत आता है क्योंकि इसमें न तो किसी प्रकार का मन्त्र जाप होता है और न ही किसी का आलम्बन। पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ ध्यान सालम्बन ध्यान है और रूपातीत निरालम्बन ध्यान है और निश्चयनय के आधार पर है। पूर्व में साधक सालम्बन ध्यान करता है फिर निरालम्बन ध्यान में पहँचकर परमात्मस्वरूप का अनुभव करते हुए परमानन्द को प्राप्त करता है। धर्मध्यान के स्वामी - धर्मध्यान के स्वामी के विषय में शास्त्रों में एकरूपता नहीं है। ज्ञानार्णव में अप्रमत्त और प्रमत्त साधु को धर्मध्यान का स्वामी माना है। इसी में आगे कहा गया है कि कितने ही आचार्य असयंत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रयत्तसंयत इन चार गुणस्थान वर्ती प्राणियों को धर्मध्यान का स्वामी कहा है। धवल में कहा है कि धर्मध्यान की प्रवृत्ति असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरणसंयत, अनिवृत्तिकरण संयत, सूक्ष्मसांपरायिक क्षपकों और उपशामकों में होती है।५४ आदिपुराण में धर्म ध्यान की स्थिति को आगम परम्परा के अनुसार सम्यग्दृष्टियों, संयतासंयतो प्रमत्तसंयतों में मानते हुए उसका परम प्रकर्ष अप्रमत्तों मे माना गया है। तत्त्वानुशासन में अप्रमत्त (सातवें गुणस्थान) प्रमत्त (चौथे गुणस्थान) ऐसे धर्मध्यान के स्वामी माने गये हैं लेकिन वहाँ एक विशिष्ट बात मिलती है कि वहां दो प्रकार का धर्मध्यान कहा है मुख्य और गौण। सातवें गुणस्थानवर्ती को मुख्य धर्मध्यानी व चौथे, पांचवें, छठे गुणस्थान वाला गौण धर्मध्यानी माना गया है।५५ अमितगति श्रावकाचार में असयंतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थान में ही धर्मध्यान माना है। हरिवंशपुराण
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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