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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 मनुष्यादि पर्याय हैं। द्रव्य में गुण और पर्याय सदा रहती है। प्रत्येक द्रव्य अनन्त गुणों का और क्रम से होने वाली उनकी पर्यायों का पिण्ड मात्र है। द्रव्य को उत्पाद व्यय और ध्रौव्य स्वभाव वाला कहना तथा गुण पर्याय वाला कहने में लक्षणों में कोई अन्तर प्रतीत नहीं होता है। केवल दृष्टि भेद है, अभिप्राय में भेद नहीं है क्योंकि जो वस्तु उत्पाद व्यय और ध्रौव्य स्वरूप कही जाती है, वही गुण पर्याय स्वरूपलक्षी है। द्रव्य का लक्षण सिद्ध होने पर द्रव्य के भेदों पर विचार आवश्यक है, प्रकृत में उनका नाम निर्देश मात्र किया जाना संभव है। द्रव्य के छः भेद हैं। १. जीव, २. पुद्गल, ३. धर्म, ४ अधर्म, ५. आकाश, ६. काल। इनमें पुद्गल धर्म अधर्म आकाश, काल अजीव द्रव्य हैं। इन द्रव्यों में अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुण लघुत्व, प्रदेशत्व, सामान्यगुण हैं और किन्तु षडद्रव्यों के पृथक पृथक विशेष गुणों को ही वस्तु के असाधारण या विशेष गुण कहा जाता है। असाधारण कहे जाने वाले गुण अपने-अपने द्रव्य की अपेक्षा साधारण होने पर भी भिन्न द्रव्य अथवा द्रव्य समूह की अपेक्षा असाधारण ही है। जैसे ज्ञान सुखादि सर्व जीवों में सामान्य रूप से पाये जाने के कारण जीव द्रव्य के प्रति साधारण हैं और अन्य द्रव्यों में न पाये जाने से उनके प्रति असाधारण है। इन गुणों-ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस आदि की अपेक्षा १६ संख्या है। चैतन्य जीव है। जीवत्व के सम्बन्ध से ही जीव माना जाता है। पुद्गल रूपी है। धर्म गति में सहायक होता है अधर्म द्रव्य स्थिति में सहायक होता है। आकाश द्रव्य अवगत देता है और कालद्रव्य द्रव्यों के वर्तन कराने वाला है। इन द्रव्यों की एकानेकता के विषय में कहा गया है कि गति स्थिति आदि परिणाम वाले विविध जीव पुद्गलों की गति आदि में निमित्त होने से भाव की अपेक्षा प्रदेश भेद से क्षेत्र की अपेक्षा तथा काल भेद से काल की अपेक्षा धर्म और अधर्म द्रव्य में अनेकत्व होने पर भी धर्मादि द्रव्य में अनेकत्व होने पर भी धर्मादि द्रव्य, द्रव्य की अपेक्षा अखण्ड एक एक ही द्रव्य है। अवगाही अनेक द्रव्यों की अनेक प्रकार की अवगाहना के निमित्त से भाव की अपेक्षा और प्रदेश से क्षेत्र की अपेक्षा आकाशयें अनन्तता होने पर भी द्रव्य की अपेक्षा
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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