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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 ध्यान कहते हैं और जो चंचल रहता है उसे अनुप्रेक्षा, चिन्ता, भावना अथव चित्त कहते हैं (२१/९) । योग, ध्यान, समाधि, धीरोध, अर्थात् बुद्धि की चंचलता रोकना, स्वान्त निग्रह अर्थात् मन को वश में करना और अन्तःलीनता अर्थात् आत्मा के स्वरूप में लीन होना आदि एक ध्यान के ही पर्याय वाचक शब्द हैं- ऐसा विद्वान कहते हैं (२१/१२ ) । जिस परिणाम से आत्मा पदार्थ का चिन्तवन करता है उस परिणाम को ध्यान कहते हैं यह करण-साधन की अपेक्षा है। आत्मा का जो परिणाम पदार्थों का चिन्तवन करता उस परिणाम को ध्यान कहते हैं यह कर्तृ-साधन की अपेक्षा है तथा क्रिया साधन की अपेक्षा चिन्तवन करना ही ध्यान है। यह मुख्यता की दृष्टि से कथन किया है (२१ / १३-१४) । यद्यपि ध्यान ज्ञान की ही पर्याय है और ध्येय को (ध्यान करने योग्य पदार्थ) विषय करने वाली है तथापि एक जगह एकत्रित रूप से देखा जाने के कारण ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्यरूप - व्यवहार को भी धारण कर लेता है। अर्थात् आत्मा के जो प्रदेश ज्ञान रूप हैं वे प्रदेश ही दर्शनादि रूप हैं इसलिए ध्यान में दर्शन सुख आदि का व्यवहार किया जाता है (२१/१५) । ध्यान में उदासीन रूप से समस्त पदार्थों का चिन्तवन किया जा सकता है। संसारी और मुक्त इस प्रकार दो भेद वाले आत्मतत्त्व का चिन्तवन करना चाहिये क्योंकि आत्मतत्त्व का चिन्तवन ध्याता के उपयोग की विशुद्धि के लिए होता है (२१/१८) उपयोग की विशुद्धि होने से बन्ध के कारण नष्ट होते हैं और कर्मो का संवर और निर्जरा होने लगती और जीव को निःसंदेह मुक्ति प्राप्त हो जाती है (२१/१९) । 23 पं. टोडरमल जी ने मोक्ष मार्ग प्रकाशक ग्रंथ में निर्विकल्प संज्ञा का स्वरूप 'एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्' के संदर्भ में लिखा है : 'जितने काल एक जानने रूप रहे तब तक निर्विकल्प नाम पाता है सिद्धान्त में भी ध्यान का लक्षण ऐसा ही किया है- एकाग्रचिन्तानिरोधोध्यानम्' । एक का मुख्य चिन्तवन हो अन्य चिन्ता रुक जाये - उसका नाम ध्यान है। सर्वार्थसिद्धि सूत्र की टीका में यह विशेष कहा है- यदि सर्व चिन्ता रुकने का नाम ध्यान हो तो अचेतनपना आ जाये। तथा ऐसी भी विवक्षा है कि सन्तान अपेक्षा नाना ज्ञेयों का भी जानना होता है, परन्तु जब तक वीतरागता
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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