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________________ 88 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 अंग में वारिषेण राजकुमार, सातवें अंग में विष्णु कुमार मुनि एवं आठवें अंग में वज्रकुमार मुनि प्रसिद्ध हुए हैं। ये दो कारिकायें आचार्य समन्तभद्र की सर्वोदयी भावना का बहुत बड़ा प्रमाण है । वह चाहते तो आठों अंगों में आठ मुनिराज या राजाओं का नामोल्लेख कर सकते थे पर उन्होंने सर्वोदयी भावना को दृष्टिगत रखते हुये इसमें मुनि हैं तो श्रावक भी हैं, राजा हैं तो रानी भी हैं, सेठ भी हैं तो चोर भी हैं, पुरुष भी हैं तो महिलायें भी हैं। आठों अंगों में सभी प्रकार के नामोल्लेख कर अपनी सर्वोदयी भावना का श्रेष्ठतम प्रमाण दिया है। इस प्रकार आचार्य समन्तभद्र ने अनेक दार्शनिकों के एकान्तवाद की मीमांसा कर और उनका समन्वय कर उन्हें यथार्थ स्थिति का बोध कराया, वहीं अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, सप्तभंगी नय, प्रमाण आदि के विकास हेतु अपने चिन्तन द्वारा अनेक नयी उद्भावनायें प्रस्तुत कीं। साथ ही समाज के बीच जाकर समन्वय, सौहार्द, विश्वबन्धुत्व तथा प्राणीमात्र के प्रति हित एवं सुख की मंगल कामना के प्रतीक "सर्वोदय" को प्रथम संदेश द्वारा सर्वोदयी भावना से युक्त सुखी, समृद्ध और शान्तिप्रिय समाज की राह निर्माण का संदेश दिया। - जैन नर्सिंग होम, सिटी पोस्ट आफिस के सामने, मैनपुरी - २०५००१ (उ.प्र.)
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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