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________________ 67 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 की प्रेरणा दी है। समन्तभद्र की स्पष्ट प्रतिपत्ति है कि अद्वैतैकान्तपक्ष को स्वीकार करने पर कर्ता कर्म आदि कारकों का और क्रिया का जो भी भेद जगत् में प्रत्यक्ष सिद्ध है वह विरोध को प्राप्त होता है। कोई एक अद्वितीय तत्त्व या वस्तु स्वयं से उत्पन्न नहीं होती है। जगत् में तो नाना वस्तुयें हैं और उनमें प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति भिन्न भिन्न कारकों से ही होती हुई देखी जाती है। पदार्थों में जायमान क्रिया भी भिन्न-भिन्न ही ज्ञात होती है। कारकों में भी परस्पर अनन्तता और अनेकता है तो क्रियायों भी अन्य क्रियाओं से भिन्न जानने में आती है। इस प्रकार क्रिया और कारकों के भेद से अनेकता ही हम लोगों को अनुभव में आती है जिससे ब्रह्माद्वैत, ज्ञानाद्वैत, शब्दाद्वैत आदि प्रतीतियोग्य नहीं माने जा सकते हैं। अद्वैतैकान्तवादों में शुभ-अशुभ कर्म, पुण्य पाप भाव या सुख-दुख रूप कर्मफल, लोक-परलोक, विद्या-अविद्या, बन्ध-मोक्ष आदि द्वैतभावों की सत्यता नहीं मानी जा सकती है। जगत् में नाना पदार्थ एवं द्वैतभावी दिखायी देने पर भी मात्र एक अद्वितीय सत्ता को सिद्ध करने के लिये अथवा द्वैतता का अभाव सिद्ध करने के लिये अनुमान प्रमाण का प्रयोग तो अद्वैतैकान्त वादियों को करना ही पड़ेगा क्योंकि प्रत्यक्ष से अद्वैतैकान्त माना ही नहीं जा सकता है। अनुमान वाक्य की प्रस्तुति साध्य और हेतु के विना कैसे होगी अतएव वहाँ हेतु और साध्य का द्वैत सिद्ध करेंगे तो उसकी प्रामाणिकता नहीं होगी। कोई सिद्धि वचन मात्र के प्रयोग से तो हो नहीं सकती यदि मानेंगे तो अतिप्रसंग का दोष पैदा हो जायेगा। हेतु के विना अद्वैतैकान्त ही क्यों अनेकात्वाद की सिद्धि भी वचनमात्र से ही क्यों न मान ली जाये। इस प्रकार तो अद्वैतैकान्तवाद काल्पनिक ही हो जायेगा। सर्वथा अद्वैत ही है। द्वैत की कोई सत्ता या प्रत्तिपत्ति सम्यक् नहीं है यह मानने वाले अद्वैतैकान्तवादियों को यह तो सोचना चाहिये कि द्वैत को माने बिना अद्वैत की सिद्धि कैसे होगी? यदि हम केवल अद्वैत को मानना चाहते हैं तो द्वैत को मानना ही पड़ेगा क्योंकि द्वैत और अद्वैत का परस्पर अविनाभाव वैसे ही है जैसे हेतु और अहेतु के बारे में है। हेतु का आकलन किये विना अहेतु की कल्पना सर्वथा मिथ्या
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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