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________________ 54 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार’ स्मृति व्याख्यानमाला २२ दिस. २०१३ में दिया गया व्याख्यान - आचार्य समन्तभद्र का आप्त मीमांसा प्रो. श्रीयांश कुमार सिंघई, जयपुर जिनोपदेश को सर्वोदय तीर्थ उद्घोषित करने वाले महान् तार्किक आचार्य समन्तभद्र ने ईसा की द्वितीय-तृतीय शताब्दी में भारत भूमि को अलंकृत किया था। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की जो विरासत हमें मिली है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि वे अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। निर्दोष भक्ति भावना के उन्नायक स्तोत्रकार तो वे आज भी हैं। समीचीन धर्म को प्रसिद्ध करने वाले आचार्य समन्तभद्र को निर्द्वन्द रूप से हम जिनधर्मोन्नायक महान् श्रमण मान सकते हैं। मुक्ति मूलक पुरुषार्थ की अभिव्यञ्जना और सन्मार्ग की प्रभावना के लिये युक्त्यनुशासन के प्रस्तोता के रूप में उनकी ख्याति सदा अमर रहेगी। उनकी देशना सर्वत्र हितमितस्वरूपा और अपराजिता होने का गौरव से मंडित है। उनके भद्रार्थ का प्रद्योत जहाँ सर्वत्र ज्योतिर्मय है तो वहीं युक्तियों का प्रयोग भी सर्वथा अकाट्य माना जा सकता है। उनके द्वारा निर्दिष्ट प्रमेय प्रमाणपरिधि का उल्लंघन नहीं करते हैं और सत्यानुगुम्फित होकर मानों भद्र प्रयोजन पर केन्द्रित होते हुये प्रस्फुटित होते हैं। शायद इसीलिये ही आचार्य शुभचन्द्र ने अपने पाण्डव पुराण में उन्हें भारतभूषण के विशेषाख्यान से अभिहित किया है। समन्तभद्र की रचनाओं में स्तुतिविद्या (जिनशतकम्), स्वयम्भूस्तोत्रम् (समन्तभद्रस्तोत्रम्), युक्त्यनुयनुशासनम् (वीरजिनस्तोत्रम्), आप्तमीमांसा (देवागमस्तोत्रम्) और रत्नकरण्डश्रावकाचारः (समीचीनधर्मशास्त्रम्) नामक संस्कृत रचनायें आज हमें उपलब्ध हैं। आप्तमीमांसा पर दो महान् तार्किकों आचार्य भट्टाकलंकदेव और विद्यानन्द ने टीकायें लिखी हैं। जिनका दार्शनिक जगत् में अपना अप्रतिहत वैशिष्ट्य है। इनमें भट्टालंक ने अपनी टीका को आप्तमीमांसा भाष्य से
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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