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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 51 में बताया जा रहा है। सम्यकदर्शन - इस जीव का परमहितकारी उपाय सम्यक्दर्शन है। अनादिकाल से भूले-गुमराह हुए शिष्य का पहला कर्त्तव्य मूलभूल मिथ्यात्व को हटाना है। अतः आचार्य सम्यक्त्व का विवेचन करते हुए कहते हैं कि संसार में भूल का मूल कारण- विपरीत बुद्धि का होना है और उसको हटाने का मुख्य उपाय - सम्यक्दर्शन है। विपरीताभिनिवेश हटाकर, सम्यक् निश्चय करता है, और उसी में लीन होयकर, सम्यक्चारित धरता है। वह ही एक उपाय जीव का, पुरुषारथ की सिद्धि का, मोक्ष दशा का बीज वही है, संसारी जड़ कटने का। मेरा आत्मा पर से भिन्न है- ऐसा निश्चय कर जानना ‘सम्यक्ज्ञान' है। तथा आत्मा के यथार्थ स्वरूप को जानकर व श्रद्धान कर उसमें स्थिर होना, लीन होना या तन्मय होना निश्चय से चारित्र है। आचार्य वीरसेन ने षट्खण्डागम में चारित्र का लक्षण निरूपित करते हुए लिखा है - “पापक्रियानिवृत्तिश्चारित्रम्' - अर्थात् पाप क्रियाओं का छूटना ही चारित्र है। यहो पाप से तात्पर्य - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद व कषाय- ये चार पाप क्रियायें हैं इनके द्वारा ही घातिया कर्मों का आस्रव व बंध होता है। सम्यज्ञान - सम्यक्दर्शन प्राप्त करने के बाद आत्म कल्याण के इच्छुक, आगम, अनुमान एवं प्रत्यक्ष, इन तीन प्रमाणों के द्वारा सम्यक्ज्ञान की पुरुषार्थ के साथ आराधना करना चाहिए। बिना सम्यक्ज्ञान के आत्म कल्याण की सिद्धि नहीं हो सकती। सम्यक्ज्ञानी शुभोपयोग की भूमिका में रहते हुए, यही लक्ष्य रखता है कि जब तक शुद्धोपयोग प्राप्त नहीं होता, इसका आलम्बन लें। सम्यक्चारित्र - सम्यक्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हो जाने से चारित्र रूपी बीज की भूमिका तैयार हो पाती है, जिस बीज का फल, मोक्ष रूप कल्पवृक्ष का उत्पन्न हो जाना है। सम्यक्चारित्र की भूमिका में मुमुक्षु सम्पूर्ण कषायों से
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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