________________
44
अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 “तपोविशेषाद्दद्विप्राप्तिर्लब्धिः ।"- स.सि. २/४७, ३५३/२ तप विशेष से प्राप्त होने वाली ऋद्धि लब्धि है। लब्धि भेद -
पांचलब्धि- दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि और वीर्यलब्धि। ये पाँच लब्धियाँ दानान्तराय आदि के क्षयोपशम से होती है।
"लद्धी पंच वियप्पा दाण-लाह-भोगुपभोग-वीरिय-मिदि।" क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग और क्षायिक वीर्य।
दाणे लाभे भोगे परिभोगे वीरिए य सम्मत्ते।
णव केवल- लद्धीओ दंसणं णाणं चरित्ते य॥ अर्थात् दान, लाभ, भोग, परिभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान और चरित्र ये नो केवल लब्धियाँ है।'
लब्धिःकाल करणोपदेशोपशमप्रायोग्यता भेदात् पंचधा।
जीवों की सुखादि की प्राप्ति रूप लब्धि काल, करण, उपदेश, उपशम और प्रायोग्यता पांच प्रकार की होती हैं।
खयउवसमियविसोही देसणपाउग्गकरणलद्धि य।'
क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्यता और करण ये पाँच लब्धियाँ है। स्पर्धक - अनेक प्रकार की अनुभाग शक्ति से युक्त कार्मण वर्गणाओं के समूह को स्पर्धक कहते हैं।
इन पांच लब्धियों के हुए बिना सम्यक्त्व उत्पन्न नहीं होता है। क्षयोपशम लब्धि - आठों कर्मों की समस्त अप्रशस्त प्रकृतियों की अनुभाग शक्ति प्रति समय अनन्तगुणी घटती हुई आगे क्रम से उदय में आने लगे उस काल में क्षयोपशम लब्धि है। स्पर्धकः- उदय प्राप्त कर्म के प्रदेश अभव्य - अनन्त गुणे, सिद्धो - अनन्त भाग
जो सर्वघाती स्पर्धक के उदय का अभाव यम और सर्वघाती स्पर्द्धक उदय अवस्था को प्राप्त तो नहीं हुए परन्तु जिनकी सत्ता विद्यमान है वह उपशम ऐसे संयोग की प्राप्ति जिस समय होती है, वह क्षयोपशम लब्धि है।
पूर्व संचित कर्मों के मल रूप पटल के अनुभाग स्पर्धक जिस समय