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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 43 लब्धि स्वरूप एवं विश्लेषण • डॉ. निर्मला जैन (बैनाड़ा) आत्मा का स्वभाव ज्ञान दर्शन स्वरूप है। इस गुण को आठों कों ने आच्छादित कर दिया है। आत्मा में ज्ञान आदि शक्ति विशेष लब्धि है। लब्धि शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है"लम्भनं लब्धिः - प्राप्त होना। ज्ञानावरण कर्म क्षयोपशमविशेषः” (स.सि. २/१८, २९६ पृष्ठ १२७) ___ अर्थात् ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम विशेष को लब्धि कहते हैं। "इन्द्रियनिर्वृत्ति हेतुः क्षयोपशम विशेषो लब्धिः ।"(रा.वा. २/१८, १, १३०, २०) जिस ज्ञानावरण क्षयोपशम के रहने पर आत्मा द्रव्येन्द्रिय की रचना के लिए व्यापार करता है उसे लब्धि कहते हैं द्रव्येन्द्रिय - शरीरधारी जीव को जानने के लिए साधन-स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण बाह्य इन्द्रियाँ द्रव्येन्द्रिय हैं। भाव इन्द्रिय - द्रव्यइन्द्रिय के पीछे रहने वाले जीव के ज्ञान का क्षयोपशम व उपयोग भावेन्द्रिय है, जो साक्षात् जानने का साधन है। "लब्धुपयोगौ भावन्द्रियम्।" लब्धि और उपयोग भावेन्द्रिय है। - त.सू. २/१८ लब्धि के अनुसार होने वाला आत्मा का ज्ञानादि व्यापार उपयोग है। "तन्निमित्तः परिणाम विशेष उपयोग"- रा. वा. २/१८, २०, २ पृष्ठ १३० "मतिज्ञानावरण क्षयोपशमोत्था विशुद्धि जीवस्यार्थ-ग्रहणशक्ति लक्षणलब्धिः " - गो. जी./जी.प्र./१६५/३९१/४ जीव के मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न विशुद्धि और उससे उत्पन्न पदार्थों को ग्रहण करने की शक्ति लब्धि है। __ इन्द्रिय की निवृत्ति का कारणभूत जो क्षयोपशम विशेष लब्धि है। इसके सन्निधान से आत्मा द्रव्येन्द्रिय की रचना में व्यापार करना है, ऐसे ज्ञानावरण के क्षयोपशम विशेष लब्धि है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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