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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 ___ 'व्' > 'त्' जैसे- परिवार > परिताल, कवि > कति (ठा० ३५८, ३९३) इत्यादि। _ 'व्' 'य्' जैसे- परिवर्तन > परियट्ठण, परिवर्तना > परियट्ठणा (ठा० ३४९) आदि। ८. शब्द के आदि, मध्य, अन्त्य और संयोग में सर्वत्र ‘ण' की तरह ‘न्' भी प्राप्त होता है, जैसे- नदी > नई, ज्ञातपुत्र > नायपुत्त, आरनाल> आरनाल, अनिल > अनिल, अनल > अनल, प्रज्ञा > पन्ना, अन्योन्य > अन्नमन्न आदि। ९. एव के पूर्व अस् के स्थान पर ‘आम्' होता है, जैसेयमेव>जामेव, एवमेव > एवामेव इत्यादि। १०. दीर्घ स्वर के बाद 'इति वा' के स्थान पर 'ति वा' और 'इ वा' का प्रयोग होता है, जैसे- इन्द्रमह इति वा > इंदमहे ति वा, इंदमहे इ वा आदि। ११. यथा और यावत् शब्द के 'य' का लोप और 'ज्' दोनों प्राप्त होते हैं, जैसे- यथाख्यात > अहक्खाय, यथाजात > अहाजाय, यथानामक > यावत्कथा > आवकहा, यावज्जीव > जावज्जीव इत्यादि। १२. गद्य में भी अनेक स्थलों पर समास के उत्तर शब्द के पहले 'म्' आगम होता है, जैसे-निरयंगामी, उड्ढंगारव, गोणमाइ, सामाइयमाइयाइं आदि। १३. गृह शब्द के स्थान पर गह, घर, हर, गिह आदि होते हैं जैसे गृहम् > गहं, घरं, हरं, गिहं। १४. म्लेच्छ शब्द के च्छ के स्थान पर विकल्प से क्खू तथा एकार के स्थान पर विकल्प से आकार और उकार आदेश होते हैं, जैसेम्लेच्छः > मिलेक्खू, मिलक्खू, मिलुक्खू। १५. पर्याय शब्द के ‘र्याय' भाग के स्थान के विकल्प से रियाग, ज्जाय, रितात आदि आदेश होते हैं, जैसे- पर्यायः > परियागो, पज्जायो, परितातो आदि। १६. बुधादिगण पठित शब्दों के धकार के स्थान पर विकल्प से हकारादेश होता है, जैसे- बुधः > बुहो, बुधो रूधिरं > रूहिरं, रूधिरं आदि।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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