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________________ 14 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 भारतीय दर्शनों की विभिन्न शाखाओं का सूक्ष्मता से अन्वीक्षण किया। इसके प्रतिफल उन्होंने समन्तभद्र की ‘आप्तमीमांसा' को प्रौढ़ संस्कृत गद्य में आठ गुणा विस्तार देकर 'आप्तमीमांसाभाष्यम्- अष्टशती' बना दिया। आगे चलकर विद्यानन्द ने आप्तमीमांसा' तथा आप्तमीमांसाभाष्य' को समाहित करते हुए, उसे संस्कृत गद्य में आठ हजार श्लोक प्रमाण विस्तार देकर आप्तमीमांसालङ्कतिः-अष्टसहस्री लिखी। 'आप्तमीमांसाभाष्यम्' का प्रकाशन सन् १९०५ में सनातन जैन ग्रन्थमाला, काशी, कलकत्ता से प्रथम बार हुआ। इसके साथ वसुनन्दि कृत जैनागमवृत्तिः' भी प्रकाशित हुई। इतने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ आठ दशक तक पुनः प्रकाशित नहीं हुए। स्वामी समन्तभद्र के ग्रन्थों का उनकी टीकाओं के साथ अनुसन्धान, सम्पादन और प्रकाशन की प्रायोजना के अन्तर्गत मैंने अकलङ्क कृत 'आप्तमीमांसाभाष्यम्' तथा वसुनन्दि कृत देवागमवृत्ति को अनेक ताडपत्रीय तथा कागज पर लिखित प्राचीन पाण्डुलिपियों का उपयोग करते हुए सम्पादित किया। इसके साथ ही स्व. पं. जुगलकिशोर मुख्तार कृत आप्तमीमांसा को हिन्दी-अनुवाद-व्याख्या को भी सुरक्षित करने के उद्देश्य से सम्मिलित किया। मेरा यह संस्करण सन् १९८७ में समन्तभद्र ग्रन्थावली के नाम से वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी से प्रकाशित हुआ। सन् १९८७ के बाद इक्कसवीं शती के प्रथम दशक में 'आप्तमीमांसाभाष्यम्' तथा 'देवागमवृत्ति’ को और संस्कारित और परिष्कृत करके सर्वथा नये स्वरूप में प्रकाशित किया जा रहा है। ताडपत्रों पर प्राचीन कन्नड लिपि में उकीरे गये भाष्य को ताडपत्रीय प्राचीन पाण्डुलिपियों के आधार पर वर्तमान कन्नड लिपि में संग्रथित (Restore) किया गया है तथा देवनागरी और रोमन लिपियों में रूपान्तरित किया गया है। पूर्व में देवनागरी लिपि में रूपान्तरित करके कागज पर लिखी गयीं पाण्डुलिपियों का समुचित रूप में उपयोग किया गया है। इस संस्करण में 'आप्तमीमांसाभाष्यम्' हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत है। अन्त में चार परिशिष्ट सम्मिलित किये गये हैं:१. उद्धृत वाक्य सूची, २. आप्ततीमांसाकारिकानुक्रम, ३. आप्तमीमांसा विशिष्ट शब्दानुक्रम, ४. आप्तमीमांसाभाष्य विशिष्ट शब्दानुक्रम। ‘समन्तभद्रभारती' के क्रम में आप्तमीमांसाभाष्यम्' का प्रकाशन मेरे वर्तमान जीवन में पचहत्तरवें
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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