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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 संदर्भ: १. मूलाचार, मूलगुणाधिकार, १-३ २. “एवं विहाणजुत्ते मूलगुणे पालिऊण तिविहेण। ___होऊण जगदि पुज्जो अक्खयसोक्खं लहइ मोक्खं।। - वही ३६ ३. सर्वार्थसिद्धि, २/३० ४. मूलाचार, गाथा- ४७८-४८१ ५. लिङ्गपाहुड, १२-१४ ६. मूलाचार, गाथा- ४८५, ४९०-४९१ ९. मूलाचार, गाथा ७००-८०० १०. भगवती आराधना, १३८ ११. मूलाचार गाथा ८०४ १२. वही, गाथा ३०४, ३०६ १३. 'सच्छन्दगदागदी सयणणिसयणाणादाण भिक्खवोसरणे। सच्छन्दणंपरोचि य मा मे सत्तूवि एगागी।। - मूलाचार, १५० १४. द्रष्टव्य - भगवती आराधना १३१०-१३१२ १५. मूलाचार, १५० १६. आचारसार, २७ १७. मूलाचार, १४९ की वृत्ति १८. मूलाचार, ७९५ १९. मूलाचार, ७७१ की आचारवृत्ति २०. भगवती आराधनपा, १४८ २१ मूलाचार- ९६२ २२. 'आयस्तिणमुनणायइ जो मुणि आगमं ण जाणंतो। अप्पाणं पि विणासिय अण्णे वि पुणे विणासेई ।। - वही, ९९५ २३. दिशाबोध, अक्टूबर २००७, पृष्ठ २२-२३ २४. द्रष्टव्य- अनेकान्त, अक्टूबर-दिसम्बर १९८९, पृष्ठ ३२ (पं. पद्मचन्द्रशास्त्री द्वारा लिखित 'साधु बनना टेढ़ी खीर है' में उद्धृत) - अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, एस. डी. पी. जी. कालेज, मुजफ्फनगर (उ.प्र.)
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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