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________________ 7 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 होते हैं।१ यत्नाचारपूर्वक श्रमण को योग्य क्षेत्र में तथा योग्य मार्ग में विहार करना चाहिए। बैलगाड़ी, अन्य वाहन, पालकी, रथ अथवा ऐसे ही अनेक वाहन जिस मार्ग से अनेक बार गमन कर जाते हैं, वह मार्ग प्रासुक है। हाथी, घोड़े, गधा, ऊँट, गाय, भैंस, बकरी या भेड़ें जिस मार्ग से अनेक बार चलते हैं, वह मार्ग प्रासुक हो जाता है। जिस मार्ग पर स्त्री-पुरुष चलते रहते हैं, जो आतप आदि से तप्त हो चुका है तथा जो शस्त्रों से क्षुण्ण हो गया है, वह मार्ग प्रासुक हो जाता है।१२ एकाकी विहार की स्थिति - मूलाचार में एकाकी विहार का निषेध करते हुए कहा गया है कि “गमन, आगमन, शयन, आसन, वस्तुग्रहण, आहारग्रहण, भाषण, मलमूत्रादि विसर्जन इन कार्यों में स्वच्छन्द प्रवृत्ति वाला कोई भी श्रमण मेरा शत्रु भी हो तो भी एकाकी विहार न करे। आज श्रमणों में अपने दोष प्रकट होने के भय से अन्य संघ के श्रमणों के साथ रहने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है तथा वे अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए एकाकी विहार कर रहे हैं। भगवती आराधना में ऐसे श्रमणों को यथाच्छन्द नामक पापश्रमण कहा है। मूलाचार में साधु के विहार के संबन्ध में कहा गया है कि गुरु से पूछकर उनसे आज्ञा लेकर मुनि अपने सहित चार, तीन या दो साथियों के साथ विहार करे।५ अर्थात् कम से कम दो पिच्छीधारी संघ से आज्ञा पाकर जाते हैं, एकाकी श्रमण नहीं जाता है। एकाकी की पंचमकाल में अनुमति नहीं है। आचारसार में कहा गया है कि जो मुनि बहुकाल से दीक्षित है, ज्ञान, संहनन और भावना से बलवान् है, वह एकल विहारी हो सकता है। आचार्य वसुनन्दिकृत मूलाचारवृत्ति में कहा गया है कि जो तपों की आराधना करते हैं, चौदह पूर्वो के ज्ञाता हैं, काल-क्षेत्र के अनुकूल आगम के जानकार हैं एवं प्रायश्चित्तशास्त्र के ज्ञाता हैं। जो किसी उत्तम संहनन के धारक हैं, क्षुधादि बाधाओं को सहन करने में समर्थ हैं, ऐसे श्रमण एकल विहार कर सकते हैं। अन्य साधारण मुनियों को, विशेष रूप से हीन संहनन वाले इस पंचम काल में एकाकी विहार का विधान नहीं है। एकत्रसंस्थिति या अनियतविहार की स्थिति- वर्षाकाल या अन्य विशेष परिस्थितियों के अतिरिक्त श्रमण को सदा ही विहार करते रहने का
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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