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________________ जैन वाङ्गमय में संगीत -सिद्धार्थजैन,एम.म्यूज. संगीत एक ऐसी कला है, जो साधना के बल पर प्राप्त की जाती है। वस्तुतः संगीत- भक्त के हृदय की भक्ति को प्रगट करने का एक सफल माध्यम है। संगीत एक ईश्वरीय नियामत है। स्वर-साधना से एक संगीतज्ञ प्रभु की उपासना करता हुआ एक आध्यात्मिक पुरुष के समान पवित्र मन और हृदय वाला बन जाता है। प्राचार्य निहालचंद जैन ने अपनी एक कृति में संगीत को अपने मौलिक रूप से परिभाषित किया है। उन्होंने लिखा कि संत शब्द के बीच में यदि 'गी' जुड़ जाय तो संगीत बन जाता है, अर्थात् संत जो गाता है, वह संगीत है। संगीत का उपयोग प्रारंभ में भगवान की भक्ति के लिए ही होता था। बाद में विविध भावाभिव्यक्ति के लिए इसे उपयोग में लाया जाने लगा। भगवान के प्रति सर्वतोभावेन आत्म समर्पण होने के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है। तिलोयपण्णत्ति' नामक ग्रंथ में मध्यलोक के स्वरूप में आठवाँ द्वीप 'नन्दीश्वर-द्वीप' बताया है, जहां के अकृत्रिम चैत्यालयों में देव/देवियां जाकर, अपनी भक्ति को संगीत के माध्यम से करने का उल्लेख प्राप्त होता है। वहाँ 'मनुष्य' नहीं जा सकते केवल सम्यग्दृष्टी देव वहां की वंदना करके अतिशय पुण्य अर्जित करते हैं। जैन मंदिरों में संगीत जिनालयों, चैत्यालयों, उपासना गृहों में संगीत का उपयोग जिनेन्द्र देव की पूजन, अर्चन एवं स्तवन के लिए सदा से होता रहा है। बड़े-बड़े स्तुतिकारों ने अपने स्तवन या स्तोत्रों में जिनदर्शन के समय संगीत के प्रसंगों को उद्धृत किया है। जैसे दृष्टं जिनेन्द्र भवनं सुर-सिद्ध-यक्षगन्धर्व-किन्नर-करार्पित-वेणु-वीणा। संगीत मिश्रित-नमस्कृत-धीर नादै, रापूरिताम्बर-तलोरु-दिगन्तरालम्॥ दृष्टाष्टक स्तोत्र-४॥ जिसका भावार्थ है कि मैंने (भक्तों ने) जिनेन्द्रदेव के मंदिर के दर्शन किये, जहां देव, सिद्ध-यक्ष, गन्धर्व, किन्नर अपने हाथों में वांसुरी या वीणा आदि वाद्य लिए हुए, मधुर संगीत के साथ भगवान् को नमस्कार, उनकी वन्दना कर रहे थे और उनकी संगीत ध्वनि दिग्दिगन्त में व्याप्त हो रही थी। इसी स्तोत्र में आगे यह भी बताया है कि संगीत के साथ भक्तिनृत्य की भी परम्परा है - देखें। दृष्टं जिनेन्द्र भवनं विलसीद्वलोल, मालाकुलातिललितालक विभ्रमानम्।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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