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अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013
आहार ग्रहण नहीं करते हैं। उसे अनीशार्थदोष मानते हैं जिस तरह चाणक्य ने कहा था कि
"सुखस्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलं अर्थः।
अर्थस्य मूलं राज्यं। राज्यस्य मूलं इन्द्रियजयः।" अर्थात् सुख का मूल धर्म है। धर्म का मूल अर्थ है। अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रिय जय है। उसी तरह अर्थशास्त्र भी सुख का मूल अर्थ मानता है और अर्थ के इर्द-गिर्द सभी उपलब्धियों को स्वीकार करता है। अर्थशास्त्र भी मांग और पर्ति तथा उपयोगिता और हास के नियम को स्वीकार करता है। जैन धर्म-शास्त्र भी अर्थ की महत्ता को स्वीकार करते हैं किन्तु गृहस्थ के लिए ही। मुनि के लिए अर्थ अनर्थकारी है। गृहस्थों को अर्थ की मांग रहती है इसलिए जैनाचार्यों ने कहा कि तुम न्यायोपात्त धन ग्रहण करो और जब तुम्हारी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए तब उसका हास करो अर्थात् लोभ छोड़ो और दान करो। जब गृहस्थ मुनि बन जाए तब उसके लिए कहा कि अब न तुम अर्थ की मांग करोगे और न उसकी पूर्ति के लिए प्रयास करोगे। बल्कि तुम अर्थ का पूरी तरह मन-वचन-काय से, कृत-कारित-अनुमोदना से त्याग करो। यह त्याग तुम्हें अपरिग्रह महाव्रती बनायेगा।
इस तरह हम देखते हैं कि मूलाचार भले ही मुनि के लिए अर्थ संचय का पक्षधर न हो किन्तु अर्थ के परित्याग को तो विषय बनाता ही है और यह अर्थ का परित्याग उनके अर्थ (मोक्ष प्राप्ति रूप प्रयोजन) की सिद्धि में सहायक है अतः मूलाचार और अर्थशास्त्र कहीं न कहीं एक दूसरे से संबन्धित अवश्य दिखाई देते हैं। वैसे भी मुनि के द्वारा सदुपदेश पाकर ही गृहस्थजन नैतिक तरीके से अर्थार्जन करते हैं और अर्जित अर्थ को जिनायतनों के निर्माण, मुनि आदि अतिथियों के सत्कार (आहारदान, शास्त्रदान, उपकरणदान) आदि में उपयोग करते हैं। अतः धर्मशास्त्र के साथ-साथ अर्थशास्त्र की भी उपयोगिता है। मूलाचार के मूल में अट्ठाईस मूलगुण हैं। इसी प्रकार धर्म के मूल में अर्थ है; इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
संदर्भ : १. पाहुडदोहा - १९ २. Alfred Marashall ; Principles of Economics, P.1 (बृहत् आर्थिक विश्लेषण : विजयेन्द्रपालसिंह, पृ.१०) 3. Lionel Robbins "An Essay on the nature on the Nature and Significance of
___Economic Science (1952)P.16 (बृहत् आर्थिक विश्लेषण, पृ.१३) ४. Samuelson % Fundamentals of Economics Analysis, P.9 4. A.C. Pigou : Economics of welfate, P.4 &. Cairncross : Introduction to Economics (1944), P.9 ७.J.K. Mehta : Advanced Economic theroy, P.1-2 ८. मूलाचार (पूर्वार्द्ध) गाथा-१, वसुनन्दि टीका पृ.४ ९. वही, गाथा - ७,