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________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 निर्भर है।समय पर बारिस होने से पैदावार अच्छी होगी और किसान खुशहाल बनेगा। तीसरी बात-सामाजिक ढाँचे की है। समाज की इकाई व्यक्ति है.समाज धर्मनिष्ठ और ईमानदार हो।जब व्यक्ति-अहिंसक और ईमानदार होगा, तभी सामाजिक शोषण रुकेगा।अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों से अकाल की स्थिति की संभावना बढ़ जाती है।अस्तु यह भावना भायी गयी है कि ऐसी प्राकृतिक आपदा न हो। _ 'मेरी भावना' का अंतिम ग्यारहवाँ पदप्रेम व वात्सल्य का सौरभ दिक्दिगन्त में सर्वव्यापी हो इसके लिए संकल्पित है।जहाँ वासनात्मक प्रेम क्षुद्र वसंकीर्ण होता है मोह व स्वार्थ पर आधारित होता है, वहीं निःस्वार्थप्रेम पवित्र एवं समिष्टि को जोड़ने वाला होता है। __ अपने युग का प्रतिनिधित्व करने वाले प्राच्य विद्या के गहन अध्येता आचार्य पं.जुगलकिशोर मुख्तार' “युगवीर" उपनाम से विश्रुत, जिनके कवि हृदय ने ऐसी अमर रचना का सृजन किया जो आदर्श जीवन एवं राष्ट्रीय चरित्र का शिलालेख साबित हुआ है। “मेरी भावना" सभी धर्म ग्रन्थ के प्रथम पृष्ठ पर लिखा जाने वाला मंगलाचरण है। यह ऐसी प्रार्थना बन गयी है जो सांप्रदायिक सहिष्णुता का पैगाम है। मेरी भावना' में व्यक्ति की भावना को परमात्मा से जोड़ने का एक सार्थक उपक्रम है। मनुष्यता के वक्ष पर लिखा गया एकमंगलगान, जो जीवन को सदाचरण के प्रशस्त राह चलने के लिए आह्वान करता है। __नोटः १५ वर्ष पूर्व१९९८ में मैने मेरी भावना' को प. पूज्यमुनि श्री क्षमासागर जी महाराज की प्रेरणा व आशीर्वाद से ५ रागों में, संगीतमय निबद्ध करके एक सी.डी. का निर्माण करवाया था तभी से मेरी भावना' का हार्द मेरे अन्तःकरण में समाया हुआ था।आज इसे निबन्धरूप में साकार कर अपनी भावना का एक भावनात्मक - अर्ध्य दे रहा हूँ।- लेखक - केन्द्रीय विद्यालय, नं.१ कलपक्कम, कांचीपुरम (तमिलनाडु) ३०३१०२
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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