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________________ । अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 पुण्य पाप फल माहिं हरख बिलखौ मत भाई, यह पुद्गल पर्याय उपज बिनसै फिर थाई। पुण्योदय में हर्षमत करो और पापोदय मेंदःख मेंरुदनमत करो।सम्यकदृष्टि सुख में इतराता नहीं और दुःख में घबराता नहीं। ऐसी सधी हुई जिन्दगी जीने का भाव इस पद में है। इसी प्रकार नौवें पद में कवि अपनी सार्वभौमिक सत्ता को मंगलमय व धर्ममय देखना चाहता है।सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति सुख-कामना से उपजी भाव-दशा ही इस काव्य का केन्द्रभाव है।सुख-समृद्धि कब हो सकती है?“जब पाप-कृत्य हिंसा व क्रूरता के कृत्य, पराभव हों और परस्पर शुभता का अभिशाप समाप्त हो तभी मंगलकामना और सुख का सुर उद्भुत हो सकता है। एक प्रश्न अवश्य यह पद छोड़ कर जा रहा है कि मनुज जन्म का फल क्या है? मेरा विश्वास है कि जब ज्ञान व विवेक का परचम चारित्र के रथ पर चढ़कर घर घर धर्म की शंखध्वनि करे, तभी मनुज-जन्म की सार्थकता है। ___ १०वें पद में 'सुखी-राष्ट्र' का संकल्प दुहराया गया है। राष्ट्र-सुख-समृद्ध कब हो सकता है? जब १. राष्ट्र का किसान (कृषि) समृद्ध हो। २. राजनीति (राजा) धर्मनिष्ठ हो। ३. प्रजा- अहिंसक व ईमानदार हो। राष्ट्र सुखी होने का यह सूत्र पंडित जुगलकिशोर जी मुख्तार' साहब ने एक काव्य में समाहित कर दिया। यदि हमारी राजनीति या राजनेता भ्रष्ट होंगे, न्याय-नीति का पालन नहीं करेंगे तो देश का उत्थान व विकास कोसों दूर रहेगा। सुखी-राष्ट्र का पहला व महत्त्वपूर्ण सूत्र है-धर्मनिष्ठ राजनीति।आज राजनीति अपनी पार्टी का हित और वोट की राजनीति पर केन्द्रित हो गयी है। भ्रष्टाचार - शिष्टाचार बन गया है। राजनेता की देखादेखी शासकीय अधिकारी और कर्मचारी भी भ्रष्टाचार में संलिप्त देखे जा रहे हैं।भ्रष्टाचार समाज का कोढ़ और कैन्सर बन गया है। ऐसे माहौल में राष्ट्रीय-नैतिकता एक हाँसिये पर लटकर रह गयी है। __ कृषि-समृद्ध होगी तो देश का आर्थिक विकास समुन्नत होगा। व्यापार फलेगा-फूलेगा और प्रजातंत्र की मुस्कान बिखरेगी।किसान-भारतदेश की आत्मा है।क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि का दारोमदार बहुत कुछ वर्षा पर
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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