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पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' के स्मृति दिवस (२२ दिसम्बर) पर विशेष लेख -
मेरी भावना : जीवन का शिलालेख
सिद्धार्थ कुमार जैन, एम. म्यूज.
आचार्य जुगलकिशोर 'मुख्तार' साहब द्वारा १९१६ में रचित 'मेरी भावना' - भावनाओं का एक ज्योति कलश है। भावों की स्थिति को समझ कर ही स्वयं को समझा जा सकता है। जब हम अच्छे व प्रशस्त भावों के साथ होते हैं, तो शुभोपयोग होता है, इसके विपरीत कुशील भावों के साथ अशुभोपयोग होता है। भावों का मनोविज्ञान बड़ा अद्भुत होता है। ग्यारह पदों के इस लघुकाय काव्य में सम्पूर्ण जीवन-दर्शन बनाम जैनदर्शन समाहित हो गया है। बिन्दु में समुन्द' जैसी कहावत चरितार्थ करता हुआ यह जीवन का जीवन्त काव्य है।
मेरी भावना, आज एक राष्ट्रीय-प्रार्थना के रूप में २ अक्टूबर गांधी जयन्ती पर राजघाट (समाधि स्थल) पर अन्य धर्मों की प्रार्थना के साथ, जैनधर्म का प्रतिनिधित्व करती है। प्रायः शैक्षणिक संस्थाओं में प्रार्थना के रूप में इसका गायन किया जाता है क्योंकि इसमें समाहित जीवन-मूल्य,जाति,सम्प्रदाय और पंथ विशेष से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की प्रशस्त-राह का सार्थक मंत्र बन गया है।बैरिस्टरचम्पतरायजैनने"ConfluenceofOppsites" में "मेरी भावना" के सम्बन्ध में लिखा - "Praying to life forits Divine Gifts of Love and Mercy and Vairagya, and in wishing Peace and Happiness to all Living beings, including every manifestation of life-divine, howsoever lowly placed in order of being today"
मेरी भावना के प्रथम पद पर यदि विचार करें तो भक्ति समर्पण रूप की वन्दना किसी नामजद भगवान की नहीं की गई है अपितु जिस परमात्मा में वीतरागता, सर्वज्ञता और हितोपदेशता का गुण पाया जावे,कविका मानस उसी