SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 आदि तीन अशुभ लेश्याएँ ही होती हैं। तिर्यंच और मनुष्य उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों के सम्यक्त्व काल के भीतर विशिष्ट संक्लेश के हो जाने पर भी ये तीन अशुभलेश्याएं नहीं हुआ करती।किन्तु उसकी विराधना करके सासादन बनने वालों के अपर्याप्त अवस्था में तीन अशुभ लेश्याएं ही हुआ करती हैं। भोगापुण्णगसम्मे काउस्सजहणियं हवे णियमा। सम्मे वा मिच्छे वा पज्जते तिण्णि सुहलेस्सा।।१७ भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले निर्वृत्यपर्याप्तक सम्यग्दृष्टि जीवों में कापोतलेश्या का जघन्य अंश होता है तथा सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवों के पर्याप्त अवस्था में पीत आदि तीन शुभ लेश्याएं ही होती हैं। अयदो त्ति छ लेस्साओ सुहतियलेस्साहुदेसविरदतिये। तत्तो सुक्कालेस्सा अजोगिठाणं अलेस्स तु।।८ अर्थात् चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त छहों लेश्याएं होती हैं तथा देशविरत, प्रमत्तविरत और अप्रमत्तविरत इन तीन गुणस्थानों में तीन शुभलेश्याएं ही होती हैं।किन्तु इसके आगे अपूर्वकरण से लेकर सयोगकेवली पर्यन्त एक शुक्ललेश्या ही होती है और अयोग्यकेवली गुणस्थान लेश्या रहित है।अर्थात् समस्त सिद्ध राशि अलेश्या-लेश्यारहित है। - प्रोफेसर, जैनविश्व भारती विश्वविद्यालय लाडनूं (राजस्थान) सन्दर्भ१. पंच संग्रह प्राकृत गाथा १/१४२-४३ २. गावला १/१.१.४/१४९/६ ३. पंचाध्यायी गाथा ११४५ ४. गोम्मटसार जीवकाण्ड गा.५०९ ५. वही गा. ५१० ६. वही गा. ५१२-१४ ७. वही गा. ५१५ ८. वही गा. ५१६ ९. वही गा. ५१७ १०. वही गा. ५१८ ११. वही गा. ५२१ १२. वही गा. ५२४ १३. वही गा. ५२५ १४. वही गा. ५२६ १५. वही गा. ५२९ १६. वही गा. ५३० १७. वही गा. ५३१ १८. वही गा. ५३२।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy