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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013
जिस अपकर्षमें जैसा जोबन्ध होउसके अनुसार आयुका बन्ध होता है।लेश्याओं के शेष अठारह भेदों का स्वरूप निम्न है ___ अपकर्षकाल में होने वाले लेश्याओं के आठ मध्यमांशों को छोड़कर बाकी के अठारह अंश चारों गतियों के गमन के कारण होते हैं यह सामान्य नियम है। परन्तु विशेष नियम यह है कि शुक्लेश्या के उत्कृष्ट अंश से संयुक्त जीव मरकर नियम से सर्वार्थसिद्धि जाता है तथा शुक्ललेश्या केजघन्य अंशों से संयुक्त जीव मरकर शतार-सहस्रार स्वर्गपर्यन्त जाते हैं और मध्यमांशों सहित मरा हआ जीव सर्वार्थसिद्धि से पूर्व के तथा आनत स्वर्ग से लेकर ऊपर के समस्त विमानों में से यथा-संभव किसी भी विमान में उत्पन्न होता है और आनत स्वर्ग में भी उत्पन्न होता है।
पम्मुक्कस्संसमुदा जीवा उवजांति खलु सहस्सारं।
अवरंसमुदा जीवा, सणक्कुमारं च माहिदं।।११ पद्मलेश्या के उत्कृष्ट अंशों के साथ मरे हुए जीव नियम से सहस्रार स्वर्ग को प्राप्त होते हैं और पद्मलेश्या के जघन्य अंशों के साथ मरे हुए जीव सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। पद्मलेश्या के मध्यम अंशों के साथ मरे हुए जीव सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के ऊपर और सहस्रार स्वर्ग के नीचे-नीचे तक विमानों में उत्पन्न होते हैं। पीतलेश्या के उत्कृष्ट अंशों के साथ मरे हुए जीव सनत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्ग के अंतिम पटलों में जो चक्रनाम का इन्द्रक सम्बन्धी श्रेणीबद्ध विमान है, उसमें उत्पन्न होते हैं। पीलेश्या के जघन्य अंशों के साथ मरा हुआजीव सौधर्म ईशान स्वर्ग के ऋतु(ऋजु) नामक इन्द्रक विमान में अथवा श्रेणीबद्ध विमान में उत्पन्न होता है। पीतलेश्या के मध्यम अंशों के साथ मरा हुआजीव सौधर्म-ईशान स्वर्ग के दूसरे पटल के विमल नामक इन्द्रक विमान से लेकर सनत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्ग के द्विचरम पटल के (अंतिम पटल के पूर्व पटल के) बलभद्र नामक इन्द्रक विमान पर्यन्त उत्पन्न होता है।
किण्हवरंसेण मुदा अविधिाणम्मि अवरअंस मुदा। पंचम चरिमतिमिस्से, मज्झे मज्झेण जायते।।१२