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________________ IL अनेकान्त 66/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2013 आम के वृक्ष के पास पहुँच गये। उस वृक्ष को फलों से भरा हुआ देखकर कृष्णलेश्या वाले ने अपने विचारों के अनुसार कहा कि मैं इस वृक्ष को जड़ से उखाड़कर इसके आम खाऊँगा । नीललेश्या वाले अपने विचारों के अनुसार कहा कि मैं जड़ से तो इसे उखाड़ना नहीं चाहता, किन्तु स्कन्ध (जड़ के ऊपर का भाग) से काटकर इसके आम खाऊँगा । कापोतलेश्या वाले अपने विचार के अनुसार कहा कि मैं बड़ी बड़ी शाखाओं को गिराकर आम खाऊँगा। पीतलेश्या वाले ने अपने परिणाम अनुसार कहा कि मैं बड़ी-बड़ी शाखाओं को तोड़कर समग्र वृक्ष की हरियाली को क्यों नष्ट करूँ, केवल इसकी छोटी-छोटी डालियों को तोड़कर ही आम खाऊँगा । पद्मलेश्या वाले अपने विचारों के अनुसार कहा कि मैं तो इसके फलों को ही तोड़कर खाऊँगा । शुक्ललेश्या वाले ने अपने विचारों के अनुसार कहा कि तुम तो फलों के खाने की इच्छा से इतना बड़ा आरम्भ (पाप) करने के लिए उद्यत हो । मैं तो केवल वृक्ष से स्वयं टूटकर गिरे हुए फलों को ही बीनकर खाऊँगा । 63 भेद-प्रभेद - इस प्रकार छहों लेश्याओं के स्वरूप वर्णन के उपरान्त लेश्याओं के अंशों (भेदों) का कथन इस प्रकार है : लेस्साणं खलु अंसा, छव्वीसा होंति तत्थ मज्झिमया । आउगबंधण जोगा, अवगरिसकालभवा ।। १° अर्थात् लेश्याओं के कुल छब्बीस अंश हैं, इनमें से आठ अंश जो कि आठ अपकर्ष काल में होते हैं, वे ही आयुकर्म के बन्ध के योग्य होते हैं। छहों लेश्याओं के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद की अपेक्षा अठारह भेद होते हैं। इनमें आठ अपकर्षकाल सम्बन्धी अंशों के मिलाने पर २६ भेद हो जाते हैं। जैसे किसी कर्मभूमि के मनुष्य या तिर्यंच की भुज्यमान आयु का प्रमाण छह हजार पांच सौ इकसठ वर्ष है। इसके तीन भाग में से दो भाग बीतने पर और एक भाग शेष रहने पर, इस एक भाग के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्तपर्यन्त प्रथम अपकर्षका काल कहा जाता है। इस अपकर्ष काल में परभव सम्बन्धी आयु IL
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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