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________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 चैत्यालयों का वर्णन तथा तीनलोक में विराजमान कृत्रिम तथा अकृत्रिम जिनबिंबों का वर्णन आदि है। वैराग्य की ओर बढ़ता हुआ साधक या गृहस्थ श्रावक दोनों ही लोक के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान करके संसार परिभ्रमण के कारण को जानते हैं। जिससे लोक के उत्तम पदों के प्रति तो बहुमान बढ़ता है तथा नरकादि अधम गतियों से विरक्ति का भाव होता है जिस कारण से श्रावक तथा साधक पाप कर्मों का अर्जन करने से बचते हैं तथा पुण्य कर्म में प्रवृत्ति अधिक करते वास्तु का अर्थः वास्तु विद्या का अर्थ है भवन निर्माण की कला। इसी को प्राकृत भाषा में वत्थु, विज्जा, उर्दू में सनाअत और अंग्रेजी में आर्कीटेक्टॉनिक्स कहते हैं।धर्म,ज्योतिष, पूजापाठ आदि ने वास्तुविद्या को अध्यात्म से जोड़ दिया, जिससे उसका प्रचार एक आचार संहिता की भाँति होने लगा है। तथा समाज की आस्था जुड़ी है। ___ वास्तुशब्द संस्कृत की वस्धातु से बना है। जिसका अर्थ है रहना।मनुष्यों, देवों और पशु पक्षियों के उपयोग के लिए मिट्टी,लकड़ी पत्थर आदि से बनाया गया स्थान वास्तु है।संस्कृत का वसति और कन्नड़ का बसदिशब्द भी वास्तु के अर्थ में ही है।हिन्दी का बस्ती शब्द भी वास्तु से सम्बद्ध है, परन्तु वह ग्राम, नगर आदि के अर्थ में प्रचलित हो गया है। अकृत्रिम चैत्य एवं चैत्यालय का मापः अकृत्रिम जिनचैत्यालयों की संख्या ८५६९७४८१ है, जो पृथ्वीकायिक होते हैं। ये शाश्वत् चैत्यालय कहे जाते हैं। इनमें उर्ध्व लोक ८४९७०२३ मध्य लोक में ४५८ तथा अधोलोक में भवनवासी देवों के भवनों की संख्या ७७२००००० है तथा इन भवनों में प्रत्येक में अकृत्रिम चैत्यालय है। उर्ध्वलोक एवं अधोलोक में देवों के भवनों के ईशान दिशा में अकृत्रिम चैत्यालय हैं तथा देवों के प्रत्येक भवन में एक अकृत्रिम चैत्यालय का होना अनिवार्य हैं। परन्तु मध्य लोक में कुण्डलगिरि, रुचिकरगिरि, मानुषोत्तर पर्वत, पंचमेरु, ३० कुलाचल, ३० सरोवर, १७० विजयार्ध पर्वत, २० गजदन्त, जम्बू-शाल्मलि आदि १० वृक्ष, ४ इष्वाकार पर्वत एवं वक्षार आदि अनेक स्थानों पर स्थित जिनमंदिरों में असंख्यात् प्रतिमाएँ विराजमान हैं। ऋद्धिधारी मुनिराज,देव एवं विद्याधर सदैव इनकी पूजा-अर्चना
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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