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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013
येचार अजीव द्रव्य कालाणुओं के समान एकप्रदेशी अणुस्वरूप नही है। अतएव जीव तथा पुद्गल, धर्म, अधर्म एवं आकाश ये चार अजीव पांच को आगम में अस्तिकाय कहा गया है। वैशेषिकमान्य अजीव द्रव्य समीक्षाः वैशेषिक पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन ये नौ द्रव्य मानते हैं। इनमें आत्मा से भिन्न आठ अजीव द्रव्य हैं।आचार्य विद्यानन्दि स्वामी का कहना है कि पृथिवी आदि आठ भेद रूप अजीव द्रव्य मानना युक्तिसंगत नहीं है।क्योंकि पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और मन ये पांच स्वतंत्र द्रव्य नहीं हैं, अपित्ये पुद्गल द्रव्य की विशेष पर्यायें हैं। इन्हें पंचावयव अनुमान द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।८ यथा -
साध्य (प्रतिज्ञा) - पृथिव्यादयः पुद्गलपर्याया एव। (पृथिवी आदि पुद्गल की पर्यायें ही हैं।)
हेतु - भेदसंघाताभ्यामुत्पद्यमानत्वात्।
(भेद और संघात से उत्पन्न होने के कारण।) दृष्टान्त - ये तु न पुद्गलपर्यायास्ते न तथा दष्टाः यथाकाशादयः। (जो पदगल की पर्यायें नहीं हैं,वे भेद और संघात से उत्पन्न नहीं देखे जाते हैं। यथा-आकाश आदि।
उपनय - भेदसंघाताभ्यामुत्पद्यमानाश्च पृथिव्यादयः। (पृथिवी आदि भेद और संघात से उत्पद्यमान हैं।)
निगमन - इति न ततो जात्यन्तरम्। (इसलिए वे पुद्गल से भिन्न जाति के अन्य द्रव्य नहीं हैं।) शब्द भी पुद्गल की पर्याय है, कोई गुण नहीं है: पृथिवी आदि पुद्गल की पर्यायें हैं, यह बात उक्त पंचायवव अनुमान द्वारा सिद्ध किया जा चुका है।वैशेषिकों का कहना है कि उक्त अनुमान में अनैकान्तिक हेत्वाभास है, क्योंकि हेतु व्यभिचार दोष युक्त है। व्यभिचार दोष वाला हेतु अनैकान्तिक कहलाता है। यह हेतु शब्द गुण में व्यभिचरित है।वैशेषिक दर्शन की मान्यता है कि शब्द पुद्गल की पर्याय नहीं है। विभाग और संयोग से शब्द गुण की उत्पत्ति होती है।कहा भी गया है-'संयोगादिविभागाच्च शब्दनिष्पत्तिः।२० बाँस को या कपड़े को फाड़ते समय विभाग से तथा लोहा, कांसा आदि को पीटते समय संयोग से शब्द उत्पन्न होता है। अतः जैनों का हेतु