________________
आध्यात्मिक-भजन रे भाई! मोह महा दुख दाता
रे भाई! मोह महा दुख दाता सबत विरानी अपनी मानै
विनसत होत असाता। रे भाई! मोह महा दुख दाता, जास मास, जिस दिन छिन विरियाँ
जाको होसी घाता, साको राख सके न कोई
सुर, नर, नाग विख्याता। रे भाई! मोह महा दुख दाता, सब जग मरस जात नित प्रति नहिं
राग बिना विललाता बालक मरै करै दुख, धयन
रूदन करे बहुमाता। रे भाई! मोह महा दुख दाता, पूसे हनें विलाव दुखी नहिं
पुरग हनैं रिसखासा, 'द्यानत' मोह मूल ममता को
नास करे सो ज्ञाता। रे भाई! मोह महा दुख दाता
-कविवर द्यानतराय