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________________ आध्यात्मिक-भजन हम तो कबहुँ न निज घर आये हम तो कबहुं न निज घर आये, पर घर पिफरत बहुत दिन बीते, नाम अनेक धराये। हम तो कबहुं न निज घर आये, पद पद निज पद माति मगन है, पर परनति लपटाये, शुद्ध, बुद्ध, सुख कंद मनोहर ___ आत्म गुन नहीं गाये। हम तो कबहुं न निज घर आये, नर, पशु, देव, नरक निज मान्यो ___ परजय बुद्धि कहाये, अमल अखंड, अतुल अविनाशी चेतन भाव न भाये। हम तो कबहुं न निज घर आये, हित अनहित कछु समझयो नाहीं मृग जल बुध ज्यों धाये, द्यानत अब निज, पर पर हैं सदगुरू बैन सुनाये। हम तो कबहुं न निज घर आये।। - कविवर द्यानतराय
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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