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________________ 89 उज्जयिनी के मंदिरों में सजीले तोरण द्वारों का ऐतिहासिक परिचय चार घंटियां बनाई गई हैं। चौकी के ऊपर हल्का सा अलंकरण किया गया है। चौकी से लगा हुआ बंद कमल के आकार का मकरमुख बनाया गया है। जिसमें से गोल चक्र की आकृतियों में छोटा सा कमल का फूल बनाया है। गोले एक के बाद एक व्यवस्थित होकर तोरण का निर्माण करते हैं। जिस स्थान पर तोरण छत से मिलता है उस स्थान पर दो चक्रों में पद्मदल स्थित है, बनाया है। इस तरह के तीन कमल छत पर अंकित किये गये हैं। इस तोरण पर मुगलकालीन प्रभाव दिखाई देता है। उपसंहार - कला मानव संस्कृति की उपज है। कला का उद्गम सौंदर्य की मूलभूत प्रेरणा से हुआ है। सौंदर्य की सर्वोपरि चेतना प्रकृति के अनुकरण में निहित है। प्रत्येक प्रकार की कलात्मक प्रक्रिया का ध्येय है- सौंदर्य तथा आनंद की अभिव्यक्ति किसी भी कलाकार की कलाकृति में उसकी मनोरम कल्पना और आंतरिक भावों की परिणति हमें दिखाई देती है। चाहे वह कलाकृतिचित्रकला हो, मूर्तिकला, वास्तुकला या संगीत, नृत्यकला आदि । प्रत्येक कला मनुष्य की आत्मगत भावों को प्रकट करती है। यह कहा गया है कि "Art is th impression of imagination." हमेशा से ही कला धर्म से जुड़ी रही है, चाहे वह किसी भी देश या समय की हो। ऐसे कई शास्त्र व पुराण हैं जिनमें उज्जैन से संबन्धित धार्मिक भावनाओं का प्राकट्य होता है तथा यह स्पष्ट होता है कि उज्जयिनी में केवल भगवान शिव ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध व वैष्णव मंदिर भी स्थित है। जो कि पूर्व काल से लेकर आज तक की धार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्त करती है। उज्जैन शहर का नाम जैन धर्म श्रुतियों के अनुसार जैन मतावलम्बियों की अधिक संख्या होने के कारण ही रखा गया था। जैन कला हमेशा से ही उज्जैनवासियों को प्रभावित करती रही है। जैन वास्तुकला के उत्कृष्ठ उदाहरण हमें उज्जैन के जैन मंदिरों में देखने को मिलते हैं। ये मंदिर न सिर्फ आस्था के केन्द्र बिन्दु है बल्कि कई तरह की कलाओं से भरे हुए हैं। इन जैन मंदिरों में वास्तुकला के आकर्षक नमूने देखने को मिलते हैं जिन पर तत्कालीन जीवन का प्रभाव हमें देखने को मिलता है। इसके अतिरिक्त प्राचीन मंदिर शैलियों का प्रभाव भी हमें देखने को मिलता है। जो आज भी हमारी वास्तुकला का मूल आधार बनकर जीवित है। इस प्रकार तोरण न सिर्फ मंगल द्वार की तरह बल्कि आसुरी शक्तियों से रक्षा के लिये भी बनाये जाते हैं। जिनका मूल उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति व मन की शांति प्राप्त करना ऐसे मंगल चिन्हों को निर्मित करना जोकि जीवन में ईश्वर के प्रति आस्था जगाते हों। जहाँ मंदिर में प्रवेश करते ही ईश्वर के मांगलिक चिह्नों के दर्शन हमारे भीतर की बुराईयों को मिटाकर ईश्वर के सान्निध्य की अनुभूति कराते हैं। ५४/१०३, मानसरोवर, जयपुर- ३०२०२० (राजस्थान)
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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