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________________ अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012 इस तोरण का वह भाग जिस पर तोरण छत पर जुड़ता है वहां पर ३ वृत्तों में पद्म (कमल) उत्कीर्ण हैं, ऐसे ३ कमल छत पर उत्कीर्ण किये हैं। प्राचीन गुप्तकालीन मंदिरों में द्वारशाखा में तीन सादी शाखाएं होती थीं ये तोरण द्वार भी ३ शाखाओं वाले हैं। इन मंदिरों के स्तम्भ कोणीय है अतः द्रविड़ शैली का प्रभाव दिखाई देता है। गुप्तकालीन अलंकृत तोरण इन तोरणों से समानता प्रदर्शित करते हैं। इसलिये इस तोरण पर गुप्तकालीन प्रभाव भी दिखाई देता है। ३. श्री चन्द्रप्रभु जैन मंदिर, नमकमण्डी यह मंदिर २०० वर्ष पुराना है। यह तोरण मुगलकाल के प्रभाव से प्रभावित है। मुगलकाल बने हुए झरोखों के ऊपर जिस प्रकार के अलंकरण हुआ करते थे उसी प्रकार के अलंकरण हमें इस तोरण में दिखाई देते है। यह मुख्यतः तोरण नही है बल्कि केवल वृत्ताकार आकार में अलंकरण बना दिये गये हैं। साथ ही अलंकृत स्तम्भ बना दिये गये हैं। इस दीवार पर अलंकरण में फूल-पत्तियों व फूलों की बेल बनाकर अलंकरण किया गया है। स्तम्भ पर अलंकरण भी मुगलकाल जैसा है। स्तम्भ के निचले भाग में फूलों का तथा पत्तियों के अलंकरण ३ वृत्तों में प्रदर्शित है जबकि मध्यभाग में स्तम्भ नीचे से ऊपर की ओर गोलाई में पतला होता गया है। इस मध्यभाग में कई पतली-पतली धारियाँ बनी हुई मंदिर की स्थापना १९८८ में हुई थी। इसमें संगमरमर का बना सजीला तोरणद्वार है जो कि मकरमुख से निकलता है तथा अलंकृत खम्भों पर बना हुआ है खम्भों पर अलंकरण हेतु नारी आकृतियों का अंकन किया गया है, वेशभूषा से ये यक्षों जैसी जान पड़ती है इनमें से १ के हाथ में मृदंग व दूसरी को वेणु बताते हुए बताया गया है। इलिकाकार तोरण में अलंकरण हेतु कमल दल घंटिकाओं व चक्रों से घिरा हुआ है। तोरण के मध्य में वक्र अलंकरण दोनों को जोड़ता है, तथा उसकी सुंदरता को बढ़ाता है तोरण के स्तम्भ गुप्तकाल के अनुसार निर्मित है तथा अलंकरण भी उसी प्रकार का है। ४. आदीश्वर ज्ञान जैन मंदिर खाराकुंआ - 86 - इस मंदिर में सिद्धचक्र बना हुआ है तथा पार्श्वनाथजी का चित्र भी बना हुआ है। इस मंदिर में भी नवनिर्मित तोरण स्थित है। द्वार में ही ३ शाखाएँ व ३ तोरण बने हुए हैं। तोरण इलिकाकार तथा सफेद संगमरमर के पत्थर से बने हुए हैं स्तम्भ सादे हैं नीचे से चौकोर स्तम्भ है जिसमें कि थोड़ा सा अलंकरण है, जिसे चौकी के समान बनाया गया है। आगे की तरफ एक दिग्पाल (यक्ष) की मूर्ति उकेरी गई है। मूर्ति बहुत ही सुन्दर है, वस्त्राभूषण से सज्जित इस मूर्ति के हाथ में एक दण्ड समान अस्त्र दिया हुआ है। दोनों तरफ के स्तम्भों में १-१ मूर्ति निर्मित की गई है। मूर्ति के ऊपरी भाग अर्थात् स्तम्भ के मध्य भाग में साधारण तरीके से निर्मित किया गया है। चौकी के नीचे वाले भाग में स्तम्भ को अष्टकोणीय बनाया गया है तथा प्रत्येक २ कोणों के मध्य भाग ४ पंखुड़ियों वाला एक एक पुष्प उकेर कर बनाया गया है। पुष्प के नीचे झालर लटकती हुई दिखाई गई है। चौकी को अष्टकोणीय बनाया गया है जिसमें चारों दिशाओं में चार बंद कमल बनाये गये हैं जो कि घंटिकाओं का आभास देते हैं। चौकी के स्थान से अलंकृत मकर मुख बनाया गया है। मकर मुख के पीछे के भाग उठती हुई वेगवान जल धाराओं को वक्राकार आकृतियों में दर्शाया गया है।
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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