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________________ हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा १३. जैन, बलभद्र - भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग-४ (इन्ही लेखों को पुनः इस लेख के लेखक ने भी परखा तथा पठन किया है) १४. (१) उक्त लेख उक्त स्थल पर आज भी पठनीय है। (२) एन्युल रिपोर्ट आन दी वर्किग ऑफ राजपूताना म्यूजियम अजमेर, १९१२-१३ ई. पृ. ७,८ १५. लेखक द्वारा स्वपठित लेख १६. हस्तलिखित लेख पं. गोपाललाल व्यास १७. शर्मा, मथुरालाल - पूर्वोक्त, परिशिष्ट स-११ १८. खान, एस.आर.-पूर्वोक्त पृ. २६९-२७१ - जैकी स्टूडियो १३,, मंगलपुरा स्ट्रीट, झालावाड़-३२६००१ (राजस्थान) गते शोको न कर्तव्यो, भविष्यं नैव चिन्तयेत। वर्तमानेन कालेन, प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।। शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रुतम्। शोको नाशयते सर्व, नास्ति शोक समोरिपुः।। (वाल्मीक-रामायण) बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के बारे में चिन्तन नहीं करना चाहिए। ज्ञानी पुरुष- वर्तमान काल में प्रवृत्ति करते हैं। शोक धैर्य को नष्ट करता है, शोक शास्त्र ज्ञान को नष्ट कर देता है। यहाँ तक कि शोक सब कुछ नष्ट कर डालता है। अतः शोक के समान कोई शत्रु नहीं। यथा चतुर्मिः कनकं परीक्ष्यते, निघर्षणच्छेदनतापताड़नैः। तथा चतुर्मिः पुरुषं परीक्ष्यते, श्रुतेन शीलेन कुलेन कर्मणा।। (अज्ञात) जैसे स्वर्ण की घिसकर, छेद करके, तपाकर और पीटकर, चार प्रकार से परीक्षा की जाती है, उसी प्रकार मनुष्य कीपरीक्षा ज्ञान, शील, कुल और कर्म से की जाती है।
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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