SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 65/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2012 सन्त अबुलआला अलमुआरी ने उनसे दीक्षा ली थी। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने मांस खाना बिल्कुल वर्जित कर दिया था। यहां तक कि वे अण्डे भी नहीं खाते थे । वे अहिंसा का प्रचार करते थे। उन्होंने अपनी सुन्दर अरबी कविताओं में अहिंसा की बड़ी प्रशंसा की है। अरब देशों में एक नया संप्रदाय “कलन्दर” पैदा हुआ। कलन्दर मुनि अहिंसा के परम विश्वासी थे तथा सदैव सत्य बोलते थे। यूनान के दो कलन्दर मुनि एक सुलतान के यहाँ गए। सुलतान की बेगम ने उनका सत्कार किया। उन्हें बरामदे में तख्त पर बैठाया। थोड़ी देर के लिए वह अपने जनानखाने चली गई और अपने हीरों का हार वहीं तख्त पर छोड़ दिया । वहाँ बाग में एक शुतुरमुर्ग चर रहा था । हीरों की जगमगाहट ने उसको आकर्षित किया । वह आया और हीरों के हार को निगल गया। जब बेगम वापिस आयी तो उन्होंने देखा कि हीरों का हार वहां नहीं है। कलन्दरों से पूछा गया कि आप यहाँ बराबर बैठे थे? वे कहने लगे कि हम निरंतर बैठे थे। बेगम ने पूछा कि मैं यहाँ हार छोड़कर चली गई थी, वह हार कहाँ चला गया? कलन्द मौन रहे। उन्हें आरक्षियों को सौंप दिया गया। वे बहुत पीटे गए। खानातलासी ली गई, किन्तु हार नहीं मिला। किन्तु सन्देह उन्हीं पर था कि इन्होंने किसी तरह से हार को गायब कर दिया। उन्हें बेहद मारा-पीटा गया पर वे बोले नहीं। बाद जब उस शुतुरमुर्ग ने कोई चीज उगली। उसे चीरा गया तो उसके पेट से वह बेशकीमती हीरों का हार प्राप्त हुआ। तब उन कलन्दरों की जांच पड़ताल शुरू हुई। उनसे पूछा गया कि तुमने बताया क्यों नहीं कि शुतुरमुर्ग निगल गया? इतनी मार खाने के बाद भी तुम खामोश क्यों रहे? उन्होंने उत्तर दिया कि हम सत्य बात कहते हो शुतुरमुर्ग के प्राण चले जाते। वह पाप हम अपने ऊपर नहीं लेना चाहते थे । अहिंसा पर उनका परम विश्वास था । 24 अरबी इतिहास में वर्णन आता है कि शाहसुजा अदरबाईजान के बहुत बड़े सुलतान थे। जैन मुनि का उनके ऊपर प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपरिग्रह की दीक्षा ले ली तथा अपने राजसिंहासन का परित्याग कर दिया। बाद में वे एक कुटी बनाकर बगदाद में रहने लगे। उनकी रानी की मृत्यु हो चुकी थी । उनकी एक बड़ी सुन्दर कन्या थी । बहुत से लोग उससे विवाह करना चाहते थे। जब एक नवाब के यहां रिश्ते की बात आई तो उन्होंने तीन दिन का समय मांगा। तीन दिन बाद उन्होंने खोज शुरू की। शाहुजा ने देखा कि एक युवक मस्जिद में ध्यानमग्न होकर ईश्वर का परम भक्त है। इसके साथ ही मैं अपनी कन्या का विवाह करूँगा। जब युवक का ध्यान समाप्त हुआ और उसने आंखें खोलीं तो देखा कि शाहसुजा खड़े हुए हैं। उसने अपने को धन्य माना। शाहसुजा ने उससे पूछा - युवक तुम विवाहित हो ? युवक ने उत्तर दिया कि मैं बहुत गरीब हूँ। मेरे पास धन नामकी चीज नहीं है। मैं अपरिग्रह व्रत पालन करता हूँ। कौन मुझे अपनी कन्या देगा ? शाहसुजा ने कहा कि तुम मेरी कन्या से विवाह करो। युवक ने कहा कि आपकी कन्या का पालन पोषण तो राजमहलों में हुआ है, वह अच्छी तरह कैसे रहेगी। शाहसुजा ने कहा कि मैं अपनी कन्या का विवाह तुम्हारे साथ करूँगा । कन्या का विवाह उन्होंने अपरिग्रही गरीब के साथ कर दिया । कन्या जब अपने पति के यहां आई तो देखा कि छोटी से पर्णकुटी में एक तरफ चटाई पड़ी हुई हैं, मिट्टी के पात्र में आधी रोटी रखी हुई है। कन्या ने देखा और पूछा कि यह आधी रोटी कैसी है? युवक ने उत्तर
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy