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________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 23 हजरत मुहम्मद ने शराब को हराम कहा है- “शराब तमाम बुराईयों की जड़ है और वह बेशर्मी की चीजों में से सबसे बढ़कर है।” (हदीस : सुनन इब्ने माजा) - “हरचीज जिसकी बड़ी मात्रा नशा पैदा करने वाली हो, उसकी अल्पमात्रा भी हराम है'।” (हदीश इब्ने माजा) हजरत अनस कहते हैं कि खुदा के पैगम्बर मुहम्मद ने फरमाया - “शराब के साथ जुड़े हुए दस लोगों पर अल्लाह की ओर से लानत और धिक्कार की जाती है। जो उसको निचोड़ता या तैयार करता है, जिसके लिए तैयार की जाती है, उसकी पीने वाला, उसको पहुंचाने या भेजने वाला, जिसके पास उसे भेजा जाय या पहुंचाया जाय, जिसे शराब पेश की जाय, उसे बेचने वाला, उसकी आमदनी से फायदा उठाने वाला, उसे अपने लिए खरीदने वाला और दूसरे के लिए उसे खरीदने वाला ।” (हदीस इब्ने माजा) जैनधर्म में भी मद्यपान को सात व्यसनों के अन्तर्गन गिनाया है। पण्डित प्रवर आशाधर जी ने सागार धर्मामृत में कहा है यदेकविन्दोः प्रचरन्ति जीवाश्चेतत् त्रिलोकीमपि पूरयन्ति । यद्विक्लवाश्चेदममुं च लोकं नश्यन्ति तत्कश्यमवश्यमस्येत् ॥ अर्थात् यदि शराब की एक बिन्दु के जीव विचरण करने लगें तो तीनों लोकों को भी भर दें। जिससे दुःखी होकर इस लोक और परलोक विनाश को प्राप्त हो जाए, उस मद्य को अवश्य छोड़ देना चाहिए। इस्लाम और जैनधर्म दोनों में जुआ खेलने का निषेध किया गया है। कुरआन का आदेश है - नाप और तौल को ठीक ठीक पूरा करो। (कुरआन ६/५२) तत्त्वार्थसूत्र में अस्तेय व्रत के अतीचारों में विरुद्ध राज्यातिक्रम को गिनाया है। कुरआन (२२: ३०) में कहा गया है कि झूठ बोलने से बचो " । जैनधर्म में सत्य महाव्रत की महिमा वर्णित है। अप्रशस्त वचन को भी झूठ की संज्ञा दी गई है - असदाभिधानं अनृतम् (तत्त्वार्थसूत्र - अध्याय ७) कुरआन (१७:३२) में कहा गया है - परस्त्री गमन के निकट भी न जाओ; क्योंकि वह निर्लज्जता और बुरा रास्ता है । जैनधर्म में इत्वरिकापरिग्रहीतापरिग्रहीता गमन का निषेध किया गया है। कुरआन (१७ :३७) में कहा है- “पृथ्वी पर अकड़ता हुआ मत चल, इस प्रकार तू न पृथ्वी को फाड़ डालेगा और न बढ़कर पर्वतों तक ही पहुंच जायेगा।” “दयालु खुदा के भक्त धरती पर चलते हैं तो नम्रता के साथ ।” (कुरआन २५ :६३) जैनधर्म में दशलक्षण धर्म में दूसरा धर्म मार्दव धर्म बतलाया गया है, जो मान का त्याग करने का उपदेश देता है- “उत्तम मार्दव विनय प्रकाशे नाना भेद ज्ञान सब भासे ।" मान महाविषरूप करहिं नीचगति जगत में । “कोमल सुधा अनूप सुख चाहें प्राणी सदा।” (दशलक्षण पूजा) इस्लाम पर जैन प्रभाव ९वीं शताब्दी में बहुत से जैन मुनि दक्षिण रूस के देशों में गये । उजबेकिस्तान, ओरासान, अजरबाइजान से लेकर वे सीरिया तक गए। १९७८ में जब श्री विश्वम्भर नाथ पाण्डेय सीरिया गए तो उन्हें ज्ञात हुआ कि जैन मुनि वहां आए थे और प्रसिद्ध मुस्लिम सूफी
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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