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________________ अनेकान्त 65/3, जुलाई-सितम्बर 80 काकरण है। यह अनादि निधन मंत्रराज जिनशासन का सार है। यह जगत् के जीवों को पवित्र करने में समर्थ है। इसका एक सौ आठ बार चिंतन करने से एक उपवास का फल प्राप्त होता है। सग्गपवग्गाण दायरो१३ - चिंतामणि रत्न एवं कल्पतरु तो एक जन्म के सुख के कारण हैं, परन्तु नवकार स्वर्ग और अपवर्ग दोनों देने वाला है। इससे परमतत्त्व रूचि और परमपद भी प्राप्त होता है। क्योंकि परम योगियों द्वारा इसे ध्याया गया, उससे उन्हें तीर्थकर नाम गोत्र का कारण भी प्राप्त हुआ होगा इसमें किसी तरह का संदेह नहीं । - नवकार मन्त्र माहात्म्य का अर्थ (णवकार मंत्र माहात्म्य की प्राकृत भाषा की २५ गाथाएँ अनेकान्त- अंक ६५/१ जनवरी-मार्च २०१२ में प्रकाशित है। मूल गाथाएं उक्त अंक से देख लें, जिनका अनुवाद हिन्दी भाषा में प्रस्तुत आलेख में दिया जा रहा है- संपादक) १. सभी घाति कर्म मुक्त अरहंत तथा सभी सिद्ध हैं। आचार्य, उपाध्याय भी उत्कृष्ट हैं एवं सभी साधुओं का मार्ग श्रेष्ठ है। २. इन पांचों, पांच लक्षणधारी भव्यों के संसार में संसरण करते हुए शरण भूत है। ३. ऊर्ध्व, अधो एवं तिर्यक् लोक में जिन नवकार प्रधानता से इस भुवन में नर, सुर, शिव सुखों के कारण हैं। ४. उससे यह चिन्ता नित्य ही सूत्र स्थित जनों के द्वारा निरंतर पढ़ा जाता है। यह भव्य लोक के लिए दुःख दलन वाला है और सुख जनक ही होता है। ५. जिनके द्वारा जिस समय पढ़ा जाता है, वह उस समय फलवृद्धि वाला होता है। अवसान (एकान्त) में जिनके द्वारा पढ़ा जाता है, उसे सुगति उत्पन्न होती है। ६. यदि इसे विपत्तियों में पढ़ा गया तो सैकड़ों विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं। यदि इसे विधिपूर्वक पहा जाता है तो इसके कारण विस्तार प्राप्त होता है। ७. इससे नर एवं सुर होते हैं। सुर वरिदों के विद्याधर आदि अनेक रूप प्राप्त होते हैं। यह नवकार हार ही तरह कंठ में स्थित करें अर्थात् इसे सदैव स्मरण करें। ८. जैसे सर्प से डंस युक्त व्यक्ति गारुडमंत विष नाश करता है। वैसे ही नवकार मंत्र संपूर्ण पाप विष नाश कर देता है। ९. यह महारत्न चिंतामणि की तरह एवं कल्पद्रुम की तरह नहीं है क्या? नवकार तो इससे भी अधिक दुःख दूर नहीं करता क्या ? अर्थात् अवश्य करता है। १०. चिंतामणि रत्न आदि तथा कल्पतरु तो एक जन्म के सुख के कारण हैं । परन्तु नवकार स्वर्ग-अपवर्ग (मोक्ष) देने वाला है। ११. जो कुछ भी परमतत्त्व एवं परम पद कारण है वह इसमें है। क्योंकि परम योगियों द्वारा यह नवकार ध्याया जाता है। १२. जो पूजा विधि से जिन नमस्कार एक लाख बार गिनता है वह तीर्थकर नाम गोत्र को बांधता है। इसमें संदेह नहीं। १३. छह सौ विजय प्रमुखों के शाश्वत काल नहीं है वहाँ भी परम पुरुषों द्वारा जिन नवकार पढ़ा जाता है। १४. पांच ऐरावत एवं पांच भरत क्षेत्रों में यह पढ़ा जाता है। क्योंकि यह जिन नवकार शाश्वत शिव सुख देने वाला है।
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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