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________________ णवकार-मंत्र माहात्म्य अरहंत माहात्म्य के साथ सिद्ध का कथन भी किया है। वे भी पूर्ण कर्मों से रहित, धाति कर्मों से मुक्त होते हैं। जो पूर्णतः अपने स्वरूप में स्थित एवं कृतकृत्य हैं वे सिद्ध हैं अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अनन्तराय इन चार घाति कर्म मुक्त, आयुष्य, नाम, गोत्र एवं वेद की समाप्ति पर सिद्ध होते हैं। सर्वविवर्तात्तीर्ण यदा स चैतन्यमचलमाप्नोति। भवति तदा कृतकृत्यः सम्यक् पुरुषार्थसिद्धिमापन्नः।। सिद्ध सम्यक् पुरुषार्थ से मुक्त सभी कर्मों से तीर्ण चैतन्य एवं अचल स्वरूप को प्राप्त करते हैं। वे कृतकृत्य होते हैं। आचार्य - पञ्चविध आचार का पालन करते हैं, वे चतुर्दशविद्यास्थान में पारंगत, एकादशांगधर, स्व-समय-परसमय के पारक, मेरु की तरह निश्चल सहिष्णु आदि होते हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु जैसे भव्य तो लोगों को भव्य बनाते हैं। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पांच गुणों के धारक संसार में संसरण नहीं करते हैं। भवियाण होइ सरणं भव्यों के लिए पांचों के गुण शरण भूत हैं। ये पांचों ही संसरण को समाप्त करते हैं। इस भुवन में सुखों का कारण जिन नवकार है, जो इन्हें निरंतर सूत्र में स्थित होकर पढ़ते हैं वे ही दुःख दूर कर पाते हैं और वे सुख जन्य कारण को प्राप्त होते हैं। यह नवकार संजीवनी है घन कर्म राशि समूह नाश करने वाला है। जो भक्त इनको स्मरण करता है वह इनकी शरण को प्राप्त हो जाता है। पाव-विसं णासए - __यह नवकार मंत्र है, यह मंत्र गारुणिक के मंत्र से भी अधिक प्रभावशाली है। चिंतामणि रत्न है एवं कल्पद्रुम भी है। जो महामंत्र नवकार शुद्धिपूर्वक स्मरण करता है, उससे भव्य जीव शीघ्र मुक्ति प्राप्त करता है। यह सभी कालों में प्रभावशाली रहा है। अतीत में जिन जीवों ने मुक्ति पाई है वर्तमान में पा रहे हैं, पांच भरत एवं पांच ऐरावत क्षेत्र से भविष्यत् काल में भी मुक्ति पायेंगे। यह शाश्वत् सुख देने वाला है। जस्स मणे णवयारो२ - जिसके मन में यह नवकार है उसका संसार क्या कर सकता है ? अर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता है। यह जिनशासन का सार है। इसे चौदह पूर्वधारियों ने भी स्मरण किया, जिसके परिणाम स्वरूप वे भी आत्मा के विशुद्ध ज्ञान की ओर अग्रसर हुए। भव्य जीव सदैव इसका स्मरण करते हैं, इससे इच्छित कार्य की सिद्धि भी पाते हैं। संग्राम, समुद्र, सिंह भुजंग, दुःसाध यरोग, अग्नि, शत्रु, बन्ध, चोर ग्रहबाधा, डाकिनी-शाकिनी आदि सभी प्रकार के भय दूर हो जाते हैं। यह महासमुद्र को पार कराने में समर्थ है। गुटके रूप में प्राप्त यह णवकार - माहात्म्य-तव-संजम-णियम-रहो-तप, संयम एवं नियम का रथ है। पांचों पद सारथी है। इसको ले जाने वाला ज्ञान रूपी तुरंग वास्तव में परमनिर्वाण के मार्ग
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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