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________________ अनेकान्त 65/3, जुलाई-सितम्बर श्रमण परम्परा कल (अनागत) की - यदि आने वाले समय में, जैनाचार्यों एवं श्रमण साधुओं की भूमिका, जीवन की अर्थक्ता को तलाशने की एवं मानव मूल्यों के उत्कर्ष के लिए रही, तो निश्चित ही यह विधायक और शुभ संकेत होगा। संत मुनि / साधु आत्मकेन्द्रित होकर स्व-कल्याण की ओर मूल लक्ष्य रखकर, सामाजिक-मूल्यों एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए अपने दायित्व का निर्वहन कर सके तो यह जैनधर्म के वैश्वीकरण में मील का पत्थर साबित होगा । - 32 मानव सेवा और शिक्षा, दो ऐसे जीवन मूल्य हैं जिनकी महत्ता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी आज अत्यन्त समादर और पूजनीयता के पृष्ठों पर अंकित हैं क्यों? इसलिए कि उन्होंने अपने युग में व्याप्त अशिक्षा और अंधविश्वासों उन्मूलन के लिए साधु की तरह संयम लेकर भी क्षुल्लकावस्था में रहे। उन्होंने युग की ड़कन को पहचान कर उससे रूबरू हुए। रोग देह का हो या मानसिक, उससे मुक्त हुए बिना स्वस्थ आत्मा की बात नहीं सोची जा सकती है। जरूरी है कि मनुष्य व्यसनमुक्त और रोग मुक्त हो। व्यसन ही रोग / बीमारी को आमंत्रित करते हैं। निःस्वार्थ सेवा का व्रत और अहिंसा का पालन हमारे आचरण का पर्यायवाची बने शिक्षा रोजगारोन्मुखी होकर भी संस्कार और नैतिक शिक्षा से युक्त हो । - श्रमण और जैनाचार्य - पाषाण प्रतिमा को सूरिमंत्र देकर परमात्मा बनाता है। मंदिरों की वेदियां परमात्मा की प्रतिमाओं से भरी हुई हैं और प्रतिवर्ष हजारों प्रतिमाएं निर्मित होकर भगवान बन रही हैं। परन्तु उनके भक्तों के दिल पाषाण बनते जा रहे हैं। भगवत्ता - भक्तों के दिल में उतारने के लिए संत की पहल हो । जैन समाज का एक वर्ग व्यवहार के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ता रहता है। वह निश्चय से परमात्मा बना बैठा है। ऐसे में सेवा का दायरा घटता जा रहा है। कितना दान जैन समाज कर रही है ? परन्तु अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए कितने मेडिकल कालेज/ अस्पताल/ या मेडिकल विश्वविद्यालय जैनसमाज के खाते में है यह सोचने के लिए पाठक वृन्दों पर छोड़ रहा हूँ । जैन साधु इस दिशा में समाज को नयी दिशा एवं नव विहान दे। हाईटेक का जमाना आ रहा है। रोबोट - दैनिक चर्या का अंग बनेगा। बैंक स्वचालित होंगे। विश्व कागज विहीन हो जायेगा। दूरियां समाप्त होंगी। जैन साधु का स्वरूप भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि शास्त्रों के भण्डार कुछ चिप्सों में समाहित हो जायेंगे। भगवान महावीर ने 'युग की मांग के अनुरूप 'नारी दासत्व' का उन्मूलन किया था। अनेकान्त की धारा से प्रचलित अनेक धर्म व पंथ की मान्यताओं में सौहार्द व समन्वय की संजीवनी बोई थी। भ. पारसनाथ के समय जैनधर्म का जो स्वरूप था, उसे महावीर ने युगीन और तात्कालिक संदर्भों से जोड़कर अभिनव स्वरूप दिया था। यही काम आज श्रमण सन्तों को युग की मांग के अनुरूप कदमताल करते हुए 'आध्यात्मिक नया सवेरा' उगाना है। साधु अनेकान्तात्मक, बहुमुखी और बहुआयामी है। जैन साधु-सिर्फ एक विद्या के लिए अपनी तमाम शक्तियाँ अर्पित करता है वह है आत्मविद्या साधु की परिधि में तंत्र-मंत्र, उच्चाटन, वशीकरण, ज्योतिष,
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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