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अनेकान्त 65/3, जुलाई-सितम्बर चूर्णियों के कथानकों से ही मिलती है। इस प्रकार चूर्णीगत कथाएँ जैन आचार शास्त्र की समस्याओं के निराकरण में दिशा-निर्देशक है।
जहाँ महाराष्ट्र प्राकृत के कथा साहित्य का प्रश्न है, यह मुख्यतः पद्यात्मक है और इसकी प्रधान विधा खण्डकाव्य, चरितकाव्य और महाकाव्य है यद्यपि इसमें धूर्ताख्यान जैसे कथापरक एवं गद्यात्मक ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं। इस भाषा में सर्वाधिक कथा साहित्य लिखा गया है और अधिकांशतः यह आज उपलब्ध भी है।
प्राकृतों के पश्चात् जैन कथा-साहित्य के अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ संस्कृत भाषा में भी उपलब्ध होते हैं। दिगम्बर परम्परा के अनेक पुराण, श्वेताम्बर परम्परा में हेमचन्द्र का त्रिषष्टीशलाकापुरूषचरित्र आदि अनेक चरित्र काव्य संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। इसके अतिरिक्त जैन नाटक और दूतकाव्य भी संस्कृत भाषा में रचित है। दिगम्बर परम्परा में वरांगचरित्र आदि कुछ चरित्रकाव्य भी संस्कृत में रचित है। ज्ञातव्य है कि आगमों पर वृत्तियाँ
और टीकाएँ भी संस्कृत भाषा में लिखी गई है। यद्यपि इनमें अधिकांश कथाएँ वही होती है जो प्राकृत आगमिक व्याख्याओं में संग्रहित है, फिर भी ये कथाएँ चाहे अपने वर्ण्य विषय की अपेक्षा से समान हो, किन्तु इनके प्रस्तुतिकरण की शैली तो विशिष्ट ही है। उस पर उस युग के संस्कृत लेखकों की शैली का प्रभाव देखा जाता है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रबन्ध ग्रन्थ भी संस्कृत में लिखित है।
संस्कृत के पश्चात् जैन आचार्यों का कथा-साहित्य मुख्यतः अपभ्रंश और उसके विभिन्न रूपों में मिलता है, किन्तु यह ज्ञातव्य है कि अपभ्रंश में भी मुख्यतः चरितकाव्य ही विशेष रूप से लिखे गये हैं। स्वयम्भू आदि अनेक लेखकों ने चरित काव्य भी अपभ्रंश में लिखे हैं - जैसे पउमचरिउ आदि। __ भाषाओं की अपेक्षा से अपभ्रंश के पश्चात् जैनाचार्यों ने मुख्यतः मरूगुर्जर अपनाया। कथासाहित्य की दृष्टि से इसमें पूर्व कथाएं एवं चरितनायकों के गुणों को वर्णित करने वाली छोटी-बड़ी अनेक रचनाएं मिलती हैं। विशेष रूप से चरितकाव्य और तीर्थमालाएं मरूगुर्जर में ही लिखी गई हैं। तीर्थमालाएं तीर्थो सम्बन्धी कथाओं पर ही विशेष बल देती है। चरित, चौपाई, ढाल आदि विशिष्ट व्यक्तियों के चरित्र पर आधारित होती है और वे गेय रूप में होती है। इसके अतिरिक्त इसमें ‘रासो' साहित्य भी लिखा गया है जो अर्ध ऐतिहासिक कथाओं का प्रमुख आधार माना जा सकता है।
आधुनिक भारतीय भाषाओं में हिन्दी, गुजराती, मराठी और बंगला में भी जैन कथा साहित्य लिखा गया है। महेन्द्रमुनि (प्रथम), उपाध्याय अमरमुनिजी एवं उपाध्याय पुष्करमुनि जी ने हिन्दी भाषा में अनेक कथाएं लिखी हैं, इसमें महेन्द्रमुनि जी ने लगभग २५ भागों में, अमरमुनि जी ने ५ भागों में और उपाध्याय पुष्करमुनि जी ने १४० भागों में जैन कथाएं लिखी हैं। ये सभी कथाएं कथावस्तु और नायकों की अपेक्षा से तो पुराने कथानकों पर आधारित है, मात्र प्रस्तुतीकरण की शैली और भाषा में अंतर है। इसके अतिरिक्त उपाध्याय केवल मुनि जी और कुछ अन्य लेखकों ने उपन्यास शैली में अनेक जैन उपन्यास भी लिखे हैं। जहां तक मेरी